पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३७६

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6 अमापारण 1 f TIT प्रादा हा या ३ल्पना-प्रधान हे और प्राकृतिक वातावरण का बडा सुन्दर उपयोग रती । उनकी अधिकाश कहानियो की रगभूमि प्रकृति के खुले प्रसार मे है उन्मुना पात्रु मण्डल की विस्मयनारक ओर नाहमिक घटनावली के बीच मनोवेशन ओर मतित सिरण प्रमाद की व हानियो की विशेषता है। उनके प्रेम-कथ न । नाम और प्राकृतिक पार्श्वभूमियाँ रहा करती है और प्रसगानुरूप देश प्रेम अश्रा कोई ऐसी ही सास्कृतिय भावना या आदर्श जुडा रहता है। प्रमाहानिग ने वातावरण चित्रण, विशुद्ध कहानी क लिए कुछ अधिक हा जा रा है। उना तस्तु-आन को प्रवृत्ति अधिक है, जिसके कारण कहानिय। म चित 'न' भी दिखाई पडती ।। अतोत को सजीव वरी-11-, f.7 रही है, कदाचित् इमीलिए सम्पूर्ण कहानी सप प्रनी। उनम भाषा की पर्याप्त आलकारिकता रहती। गा। माना और भावनात्मा रचना की दृष्टि से अनुपम । ।आ, ममता, सालयती जादि ग्नकी कहानियो के उत्कृष्- उामा 14 In मा for समस्याआ, यवहारो और परि- स्थिति में । 'क117 उनका प्रथम उपन्यास, विचार- - नातोयता र आभिजा यकी भावनाओ पर एक गत मामा शंाती चरिया को भी वास्तविक परि- स्थितियो 1रया । 'कमान' +ो जपेक्षा तितली' उनकी अविस प्रसादजा न पिसानो और मजदूरो के जीग्न-चित्र उपस्थि- । भान f I ग्लिो उपन्याम की प्रमुख पात्र है। वह है। उसके चित्रण द्वारा प्रसादजी ने ग्रामीण या 7 हि मर की चेटा की है। उन्होंने ग्रामीण नव- निर्माण पर पी 11 महयोगिता जार मकारिता आदर्शा पर जाधारित तीसरा उप-गाम 'डरावनी' एतिहासिक आधार पर लिखा जा 71. • [ जितना जग निगा गया है उतन मे ही उसके एक श्रेष्ठ औपचापि 77 * दोन । प्रमाण गिता है किन्तु प्रमादजी की असामयिक मृत्यु से उनकी यह 10 ग्धरी रह गई। गमम्त निनाजा मा दखने पर वह स्पष्ट हो जाता है कि व एक प्रतिभा-सम्पन्न , यकार ता य ही, बडे मनस्वी और चिननशील लेखक भी थे। उनकी रचना प्राड होता गई है, उनके व्यक्तित्व के विकास की परिचायक है। प्रमाकी अपने जी न । अन्तिम वर्षा में कुछ निबन्ध भी लिखे थे, जो उनके प्रधान। .. 141 f + स्वत्प T + मन पस 1 - + प्रा ७२: प्रसाद वाइन