पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३७७

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साहित्यिक और शास्त्रीय ज्ञान तथा अन्नई प्टि का प्रमाण देते है। यदि वे साघातिक रोग द्वारा समय के पूर्व ही हमसे विच्छिन्न न कर लिये जाते, तो हिन्दी साहित्य और भारतीय जीवन उनकी अन्य उत्तमोत्तम कृतियो मे भी विभूषित होता। उनकी अन्तिम कृतियों को देखने से यही लक्षित होता है कि उनकी प्रतिमा लेश-मात्र भी कुठित नही हुई थी, वरन् उनका मानस-भडार अनव सुन्दर और मूत्यवान रत्नों की भेट मा भारती के चरणों में समर्पित करने की तैयारी कर रहा था। संस्मरण पर्व : ७३