पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४२५

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इसके बाद शुक्ल जी के प्रवचन का बांध खुल गया। बोले, "जान पड़ता है, कवि बनने के लिए मुझे एक जन्म और लेना पड़ेगा।" व्यासजी गहरी बूटी छान कर आये थे। वह अनजाने में ही कह बैठे, "एक जन्म क्या ? अनेक जन्म लीजिए।" फिर क्या था। शुक्ल जी ने उन्हें आड़े हाथों लिया और बोले, "क्या छोटे मुंह बड़ी बातें करते हो? अनेक जन्म तो तुम सों के लिए है।" व्यास जी हँस पड़े और बोले, "आप तो जीवन्मुक्त है, पण्डित जी।" यह सुनकर बाबू साहब भी मुसकाने लगे और हिन्दी के परशुराम शुक्लजी का विस्फोट कुछ समय के लिए पान और जरदे के सहारे टल गया। ___ आचार्य शुक्ल का यह एक और मनोरंजक व्यक्तित्व था जो उनकी प्रकाण्ड विद्वता के दबाये भी नहीं दबता था। वह संस्कृतनिष्ठ हिन्दी में एक-एक बात इस प्रकार तोल-तोलकर कहते मानो आर्ष सूक्तियां सुना रहे हों। बोले "कविता तो कथ्य का केवल एक अंग है। कथ्य का सर्वांग विवेचन करने के लिए ही निबन्ध विधा का जन्म हुआ है। कविता क्या है ! कल्पना और वास्तविकता की श्याम-श्वेत छाया वाली एक छविमात्र है । निबन्ध का चित्रफलक अपेक्षाकृत बृहत्तर है। उसमें कथ्य का सत्य और सर्वाग चित्रण होता है, और तभी वह निबन्ध कहाता है।" सम्भव है 'आंसू' पर निवन्धात्मक शैली मे लिखते समय उन्हें मिलन और वियोग की यथास्थिति दिखाने के लिए उसके उपयुक्त काल्पनिक कथाभूमि का सहारा लेना पड़ा हो, क्योंकि जिस समय मैंने उन्हें देखा था, वे पूर्ण युवा थे, परन्तु संयम की इतनी प्रौढ़ मात्रा डनकी साधना की लम्बी यात्रा के बाद ही सम्भव हो सकती थी। हो सकता है कि योगिराज कृष्ण की भांति किशोर अवस्था में ऐसी कोई वास्तविकता घटित हुई हो, परन्तु उसकी व्यथा इतनी तीव्रता से जैसे आज घटित हुई हो, इतना लम्बा समय बीतने पर कैसे सम्भव हुई होगी। परन्तु यह सब कल्पना की बातें हैं। इनका निश्चित आधार कोई नहीं हैं। वैसे हिन्दी काव्य में निबन्ध-विधा का प्रयोग उन दिनों हम लोगों के विचार विनिमय का विषय बना हुआ था। 'आंसू' काव्य के आरम्भ में आंसू की उत्पत्ति दिखाते समय, मानसलोक की उथब-पुथल का ऐसे प्रतिमानों से वर्णन किया गया है, जैसे आंसू की उत्पत्ति नहीं, एक सृष्टि की उत्पत्ति हो रही हो। स्मृति के प्रलय मेघों की भांति घनीभूत पीड़ा का छा जाना और बरस कर मानव जीवन का एक दुर्दिन उपस्थित कर देना आंसू के जन्मकाल का वातावरण है। करुणा कलित हृदय में एक ऐसी रागिनी बज उठती है जिसमें सृष्टि की सम्पूर्ण विकलता असीम वेदना का हाहाकार लेकर प्रलय. मेघों की भांति गरजने लगती है । आँसू की एक बूंद भी सृष्टि रचनाकाल के जल संस्मरण पर्व : १२१