पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४३९

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प्रसाद अपनी माता और तीन बहिनों के साथ वहाँ गये थे, वहाँ उनका मुंडन हुओ था। अमरकण्टक पर्वतमाला के दृश्यों का उनके जीवन पर बड़ा प्रभाव पड़ा था। उस समय एक दुर्घटना हो गई। प्रसाद नाव पर घूमने निकले थे, स्नान के लिए जब वे नाव से उतर रहे थे तो सहसा पानी में गिर पड़े। किसी तरह लोगों ने उन्हें बाहर निकाला। वहाँ के भीलों ने उन लोगों का विशेष आदर-सत्कार किया था। प्रसाद की रचनाओं में भीलों का जो मार्मिक वर्णन है, वह उसी अवस्था का अन्वेषण है। झारखण्ड में मुंडन होने के कारण ही उनका नाम 'झारखण्डी' पड़ा था। प्रसाद का लालन-पालन बड़े प्यार से हुआ था। परिवार में वे सबके खिलौना की भांति थे, यही कारण है कि ११ वर्ष की अवस्था तक वे नाक में 'बुलाक' पहने रहते थे। प्रसाद का परिवार बड़ा था और सम्मिलित रूप से सब लोग रहते थे। उनके पिता देवीप्रसादजी के देहान्त के बाद पारिवारिक कलह का आरम्भ हुआ। प्रसाद की रचनाओं में पारिवारिक कलह का सफल चित्रण उसी का प्रभाव प्रतीत होता है ! इस सलाह का विवरण देने के पहले उनकी वंशावली का परिचय प्राप्त हो जाना आवश्यक है। शिवरत्न साहु की दो पत्नियां थी। पहली से शीतलप्रसाद उत्पन्न हुए जो अंग्रेजी स्कूल में मास्टर थे। वे जीवन भर अविवाहित ही रहे ।' दूसरी स्त्री से बात नहीं-वे स्वतः कृद पड़े थे, तट पर पानी पी रहे बाघ पर रक्षक बन्दूकची ने जब कड़ाबीन पर पलीता लगाया तब उसके झटके में वह नाव से गिर पड़ा उसी के उद्धारार्थ वे कूद पड़े थे। उन्हीं की प्रेरणा से उसने बन्दूक दागी थी इसके उद्वेगवश वे तत्काल कूद पड़े थे और उसका परतला उन्होंने पकड़ लिया फिर तो अनेक नाविक कृदे और दोनों को निकाल लिया। यह घटना चांदनी रात में घटित हुई थी-पूरा वृत्तान्त पूज्य पिताश्री ने बताया था। नर्मदा के जलमार्ग से अमर कंटक यात्रा संवत् १९६१ में हुई वहाँ भी चूड़ा कर्म होना था--अवलोक्य, 'अवतरणिका' कानन कुसुम । (सं०) १. वस्तुतः मेरे पितामह एवं शेष पांच पितामहव्य सगे भाई थे, श्री शीतलप्रसाद सबसे ज्येष्ठ दूसरे श्री बैजनाथप्रसाद तीसरे श्री जित्तू साहु, पूज्य पितामह श्री देवीप्रसाद चौथे, उनसे छोटे श्री गिरिजाशंकर और सबसे छोटे श्री गौरीशंकर थे। अविवाहित कोई न था। श्री शीतलप्रसाद को उत्तमा नाम्नी पत्नी से पुत्र महादेव हुए जो किशोरावस्था में क्षयग्रस्त हुए। श्री बैजनाथप्रसाद का एकमात्र पुत्र यज्ञदेव की भी किशोरावस्था मे यक्ष्मा से मृत्यु हुई। परिवार में यक्ष्मा का संस्मरण पर्व : १३५