पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४४९

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'कामायनी' और 'आंसू' के रचयिता को केवल एक गोनहारिन और एक वेश्या से प्रेरणा मिली हो, यह संभव-सा नही दीखता । मैंने इस संबंध में उनसे प्रश्न किया कि वह कौन थी? इस रहस्य को कभी मेरे सामने भी उन्होने नही खोला। केवल हंसकर कहने लगे-कभी लिखोगे तो फोटो दे दूंगा ! जिन दिनो प्रसाद वासना की दुर्बल रेखाओ पर भटक रहे थे, उन्ही दिनों उन्हे एक पुत्र हुआ और चल बसा। इस घटना का विशेष रूप से उन पर प्रभाव पड़ा। तभी से वे उस मार्ग से अलग हुए और जीवन भर फिर कभी उस ओर उनका ध्यान नही गया। पहली पत्नी के देहान्त के बाद उनका जीवन बडा अस्त-व्यस्त हो गया था। वे अपने समय को मित्रो और साहित्य मे ही व्यतीत करते रहे। उनकी मनोवृत्ति धार्मिक विचारो की ओर झुकी। यही कारण था कि सब कुछ टोग समझते हुए भी उन्होने विधिवत् अपने पूर्वजो का गया-श्राद्ध किया। अपनी भाभी के विशेष आग्रह पर उन्होने फिर से विवाह करना स्वीकार किया। यह विवाह एक गरीब परिवार (देवरिया, गोरखपुर) मे हुआ था। वह स्त्री एक बार भी ससुराल नही आई और साल भर के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गई। प्रसादजी ने फिर विवाह न करने का निश्चय कर लिया था, किन्तु अधिक दिन बीतने पर भाभी के रोने पर और वश चलने के लिए उन्हे फिर तीसरा विवाह करना पड़ा। प्रसाद आरम्भ से ही अध्ययनशील थे। उन्होने शास्त्र, पुराण और अन्य सभी धार्मिक ग्रन्थो का अध्ययन किया था। प्रत्येक धर्म की वास्तविकता और आडम्बर १ प्रथम विवाह १९०८ मे पडरौना-बलोचहा मे हुआ दूसरा भी उसी कुल की दूसरी पट्टी मे १९१७ मे हुआ। उस परिवार की समृद्धि का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि पडरौना राज्य सदा उन लोगो का देनदार रहता था। विवाह के बाद मेरी दूसरी सपत्निमाता आई और प्रायः डेढ वर्ष बाद प्रसूति ज्वर मे उनका शरीरान्त हुआ। इसका विवरण 'कानन कुसुम' की अवतरणिका मे अवलोक्य है। देवरिया के जिस गरीब परिवार' की बात कही गई है उसके विषय मे मात्र यह बताना पर्याप्त होगा कि मेरी जननी श्रीमती कमला देवी का वह जन्मस्थान है और मेरे मातामह स्व० रघुबर दयाल के जीवनकाल में यदि व्यासजी वहाँ गए होते तो प्रसन्न हो जाते। क्योकि, श्रेष्ठत्तम फ्रेंच और स्काच सुराओ से आधी दर्जन 'कद्देआदम' आलमारियां समृद्ध रहती थी। २ यह प्रसंग भी 'अवतरणिका' मे स्पष्ट है। १० संस्मरण पर्व · १४५