पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४७

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गुप्त राजवंश श्री गुप्त-(ई० २७५-३००) (कोई इसका नाम केवल 'गुप्त' लिखते हैं श्री सम्मान सूचक है) घटोत्कच गुप्त-(ई० ३००-३२०) (इस नाम के साथ 'गुप्त' शब्द नहीं मिलता) चंद्रगुप्त-(ई० ३२०-३३५) (यही पहला स्वतन्त्र गुप्त वंशी राजा हुआ। वैशाली के लिच्छिवियों के यहाँ इसका व्याह हुआ) समुद्रगुप्त-(ई० ३३५-३८५) (गुप्तवंश का परम प्रतापी, भारत बिजेता सम्राट् राजसूय और अश्वमेघ यज्ञ किया) चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (ई० ३८५-४१३) (पाटलीपुत्र का विक्रमादित्य, जिसे लोग चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य कहते हैं) कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य (ई० ४१३-४५५) (मालव-विजेता, आख्यायिकाओं के विक्रमादित्य का पिता महेन्द्रादित्य) .(स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य (ई० ४५५-४६७) पुरगुप्त प्रकाशादित्य (ई. ४६७-४६९) (उज्जयिनी का द्वितीय विक्रमादित्य । (इसके सोने के सिक्कों पर 'श्री महान वीर। इसके चांदी के सिक्कों पर विक्रमा भी मिलता है। परंतु प्रकाशापरम भागवत् श्री विक्रमादित्य स्कन्दगुप्त दित्य नाम वाले मिक्ने भी इमी के हैं, अंकित है) जिन्हें उज्जयिनी में स्कंदगुप्त के शामन-काल में मगध मे इमने स्वतन्त्र रूप से ढलवाये, फिर स्कन्दगुप्त के मरने पर उसकी उपाधि श्री विक्रमः' भी ग्रहण कर ली होगी) स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य-परिचय : ४७