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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४८

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नरसिंहगुप्त बालादित्य (ई० ४६९-४७३) (यह प्रथम बालादित्य है, जिसे राजतरंगिणी-कार ने भ्रम से विक्रमादित्य का भाई लिखा है। और, वह यशोधर्म का भी समकालीन नहीं था) कुमारगुप्त विक्रमादित्य (द्वितीय ई० ४७३-४७६) (कई विद्वान कुमार गुप्त को स्कन्द गुप्त का उत्तराधिकारी मानते हैं। परन्तु यह ठीक नहीं । भितरी के 'सील' से यह स्पष्ट हो जाता है कि कुमार गुप्त द्वितीय पुरगुप्त का पुत्र था । सारनाथ वाले शिलालेख का कुमार गुप्त और भितरी के 'सील' का कुमार, दोनों एक ही व्यक्ति हैं, जिसका उत्तराधिकारी बुधगुप्त था-- जिमके राज्य में मालव पर हुणों का अधिकार हुआ। मंदसोर के शिलालेख में जिस कुमारगुप्त का उल्लेख है, उम काल (४९३ वि०) में बन्धुवर्मा का राज्य मालव पर था, उक्त ४३६ ई० में कुमार गुप्त प्रथम का राज्य था। और उमी शिलालेख में जो ५२९ वि० का उल्लेख है, वह उस मन्दिर के जीर्णोद्धार का है-'संस्कारितमिदंभूयः श्रेण्या भानुमती गृहं'-से यह स्पष्ट हैं) बुधगुप्त परादित्य ? (ई० ४७८-४९४) (इसके ममय में मगध-साम्राज्य के बड़े-बड़े प्रदेश अलग हुए । इसका राज्य केवल मगध अंग और काशी तक ही रह गया था) ४८: प्रसाद वाङ्मय