मारवाड़ी अस्पताल के सामने एक विशाल कोठी में स्थित था -आते और अधिक नहीं तो एक घण्टा अवश्य रहते तथा अनेक उपादेय परामर्श देते । १९२१ ई० की केवल दो घटनाएँ याद हैं । मेरे बगीचे से सन्ध्या समय प्रसादजी और मैं फिटन पर उनके घर जा रहे थे। घर के बिल्कुल निकट चेतगंज की सड़क पर कई लड़के ऊधम मचा रहे थे। कोचवान गाड़ी रोके-रोके कि एक लड़का पहिए के नीचे आ गया और उसका सिर बुरी तरह फट गया। देखते-देखते भीड़ जमा हो गई और सभी लोग कहने लगे कि गाड़ी को थाने ले चलो। उस हुल्लड़ में आहत लड़के का बाप भी था। प्रसादजी उमी की ओर केन्द्रित हुए। चट से जेब से २० रुपये निकालकर उसके हाथ पर रखे और ममझाया कि यह तो सोचो कि यदि रपट लिखाने के लिए गाड़ी को थाने ले चलोगे तो उतनी देर में बच्चे का क्या हाल होगा। आओ बच्चे को लेकर गाड़ी पर बैठ जाओ, हम लोग तुरन्त अस्पताल चलकर इसकी चिकित्सा का प्रबन्ध करें। उसके बाद थाने ले चलोगे तो हम लोग सहर्ष चले चलेगे। उनकी बात उसकी समझ मे आ गई और भीड़ के हो हल्ले पर बिल्कुल ध्यान न देकर बच्चे को लिए हुए गाड़ी पर बैठ गया। उन्होने गाड़ी अस्पताल की ओर मुपा दी और भीड़ स्वभावत. तितर-बितर हो गई। अस्पताल के डाक्टर मेरे घरेलू डाक्टर भी थे। उन्होंने चटपट लड़के को वार्ड में दाखिल कर लिया; उसकी मरहम पट्टी भी अपनी देखरेख में ठीक-ठीक कराई। ईश्वर-कृपा से वह कुछ ही दिन में चंगा हो गया । उस दिन यदि प्रसादजी की उन्मेषशालिनी बुद्धि काम न करती तो बड़ी दिक्कत उठानी पड़ती। १९२१ ई० की शरद ऋतु में संयोगवश मुझे मंसूरी जाना पड़ा। मेरे मित्र श्री खुशालचन्द्र देसाई आई० सी० एस० को भयंकर टायफाइड हो गया था, डाक्टरों ने पूर्ण स्वस्थ्यलाभ के लिए पहाड़ पर जाने की सलाह दी। अपनी कोठी थी ही मंसूरी मे। मैंने उन्हें वहां भेज दिया पीछे से एक अच्छी खासी अन्तरंग मित्र-मण्डली लेकर मैं भी पहुंचा । प्रसादजी पर बहुत जोर डाला किन्तु वह सनातन प्रवास भीरु थे। मेरे अनुरोध का कोई असर न हुआ। वहां उनके लिए चित्त बड़ा कचोटता रहा। सारे आनन्द में एक फीकापन व्याप्त रहा। उन्हें एक आग्रह- पूर्वक पत्र लिखा जो नीचे देता हूँ। उसका उत्तर भी बहुत पुर-बहार था, उसे भी देता हूँ-- मंसूरी २७-९-२१ प्रिया आइये । अवश्य आइये । अनुग्रहपूर्वक आये। कृपा पूर्वक आइये । दयापूर्वक आइये । प्रेमपूर्वक आइये । स्नेहपूर्वक आइये । प्रसन्नतापूर्वक आइये। मानपूर्वक आइये । अभिमानपूर्वक आइये । भावपूर्वक आइये । मंगीपूर्वक आइये। अदा से संस्मरण पर्व : १७९
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