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शोकोच्छ्वासित हृदय से लोट पड़े। जानकी बल्लभ ने उस अन्तिम मुलाकात के सम्बन्ध में एक लेख भी प्रकाशित कराया था। x दीपावली के एक दिन पहले मैं लखनऊ लौट आया। निरालाजी लखनऊ में ही थे। मैंने उन्हें प्रसादजी की चिन्ताजनक हालत से अवगत कराया। सुनकर कुछ देर तक वे जड़वत् खड़े रहे। फिर बोले--'तुम्हारी जान पहचान का कोई ज्योतिषी है ?' मैंने कहा-'हां -है !' मैं निरालाजी को अपने एक परिचित ज्योतिषी के यहां, जो वासिद्ध थे, ले गया। वे मेरे जैसे ही युवक थे और ज्योतिष विद्या के गहन अध्येता थे। मैने उनसे निरालाजी का परिचय दिया। ज्योतिषीजी बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने निरालाजी का हार्दिक स्वागत करते हुए उनके आने का प्रयोजन पूछा। निरालाजी बोले, 'मेरे मित्र प्रमादजी बहुत बीमार है। आप कृपया बतायें कि वे फैसे स्वस्थ हो सकते है ?' ज्योतिषी ने प्रश्न का समय लिखा, प्रश्न लग्न कुण्डली बनायी, कुछ देर विचार किया, फिर बोले 'अब कोई आशा नही है । दो-तीन पाद से अधिक की जीवनावधि शेष नहीं है -ऐसा प्रतीत होता है।' उन्होंने यह भी कहा, 'प्रश्न लग्न कुण्डली बताती है कि जिन के सम्बन्ध मे आपने प्रश्न किया है वे महापुरुष है और बड़े ही यशस्वी है। यह सुनकर निरालाजी उदास हो गये, उनकी आँखे डबडवा आयी । ज्योतिषीजी ने निरालाजी के हाथों की छाप ली और हम घर लौट आये। ___ उक्त घटना के दस-बारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवोत्थानी एकादशी के दिन प्रसादजी ने इस संसार को त्याग कर परम शिव का सायुज्य प्राप्त किया। जब मैं प्रसादजी के संस्मरण तैयार कर रहा इसी बीच आयुष्मान रत्नशंकरजी का एक बहुमूल्य पोस्टकार्ड मुझे मिला। उन्होंने इसके द्वारा प्रसाद और निराला दोनों महापुरुषों से संबंधित एक घटना की मुझे याद दिलाई। उनके पोस्टकार्ड में अंकित संस्मरण इस प्रकार है____ "काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पूज्य निरालाजी के कविता पाठ का प्रसंग संभव है आपके संस्मरण में आये। अनुमान है कि यह आपके छात्र जीवन की घटना है। उस काव्य पाठ के लिए यही से तैयार होकर गए थे। उस तैयारी की आंशिक स्मृति मुझे यही है कि स्नान कर कपड़े पहनने के पश्चात् उन्होंने कहा, 'बाबू साहब कुछ खुश्बू वुश्बू' पिताजी ने मुश्क अम्बर की शीशी सामने रख दी, उन्होंने तेल की भांति हथेली पर उड़ेल कर सिर संस्मरण पर्व : २११