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के द्वारा लौटाई हुई रचना को हाथ में लेकर अपनी प्रतिक्रिया निरालाजी इसी शैली में व्यक्त कर चुके हैं। इसका उल्लेख 'सरोज स्मृति' में देखा जा सकता है लौटी रचना लेकर उदास देखता हुआ मैं दिशाकाश, पास की नोचता हुआ घास । ___ यह 'घास' ही हृदयहीन संपादकों के लिए निराला की भाव की पूजा बन जाती है-'भाव की चढ़ी पूजा उन पर।' कुल सामान उन्नीस अददों में बंधा था। उसमें दो दमचूल्हे एक बोरी कोयला (लकड़ी का) दो लालटेने और पांच गैलन मिट्टी का तेल तथा पांच सात सेर आलू भी था। यात्रा-प्रसंग मे तेल और कोयले के अशुभत्व की जब किसी ने बात की तब उन्होंने कहा कि आवश्यकता पर इनका जो अभाव संभाषित है उसी को मैं अशुभ मानकर उससे बचना चाहता हूँ। ___सरोजजी की ससुराल काशी के कबीरचौरा मुहल्ले में है : इसका उल्लेख करते मिश्र-बन्धुओं से कहा कि इन्हें कैसे अप्रसन्न करूं-केवल इसी कारण से आप लोगों से क्षमा चाहता हूँ। सरोजजी कुछ विस्मित मुद्रा में अलग खड़े थे। मिश्र बन्धुओं के जाने के बाद बोले 'प्रमादजी' पहले से मुझे यह ज्ञात होता तो मैं व्यवस्था करता' : 'वह कृत्रिम होती सहज नही, मैं जानता हूँ-कहां मुझे क्लेश और कहाँ सुख होगा-उनके यहां की कैदबन्दी मुझे प्रिय न होती- तुम क्यों चिन्तित हो-सब ठीक है चलो। किन्तु, आपका भोजन ! "फिर वही बेमतलब की बात' अरे जहाँ कन्यादान दिया गया वहाँ भोजन ? तुम्हारा तुम्हारे परिवार का भोजन मेरे चौके में ही होगा। इस समय के लिए तो पर्याप्त पूरियां और मगदल हैं ही--सबेरे से करामात देखना। केवल पानी लूंगा जो कि सरकारी है'-सुतराम् हम लोग; महेश प्रसाद स्ट्रीटमौलवीगंज में पहुंचे और तख्तों चारपाइयों के नीचे असबाव ठसाठस भर गया। जिसका उल्लेख आदरणीय कुँवर साहब ने किया है। (सम्पादक) २१४ : प्रसाद वाङ्मय