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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५२९

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पा रहे थे । प्रश्न करने पर संन्यासी ने बताया कि एक शीतग्रस्त भिखारी को उन्होंने कम्बल दे दिया, उन्हें शीत नहीं लगती। स्वामीजी कभी-कभी कुछ विशिष्ट आहार ग्रहण करने की इच्छा प्रकट करते और प्रसादजी तुरन्त उसकी व्यवस्था करते-समयअसमय का विचार न करते । भोजन तैयार रहते हुए भी यदि स्वामी जी कहते कि 'मैं खिचड़ी खाऊंगा' तो फिर उनके लिये खिचड़ी बनायी जाती। प्रसादजी को द्वितीय पत्नी से एक पुत्र हुआ वे ६ दिन बाद प्रसूति ज्वर में गत हो गई। पुत्र जन्मोत्सव के मंगलाचार हो रहे थे कि वही स्वामीजी आ गए और बोले 'अभी तो मगन हो साव अब रुदन सुनोगे।' कुछ ही क्षणों वाद प्रसूति ज्वर ग्रस्त पत्नी ने ६ दिनों का शिशु छोड़कर शरीर त्याग दिया। और, उधर स्मशान में मुखाग्नि होते-होते शिशु भी चल बसा, तुरन्त उसके शव को लेकर रंजीत सिंह स्मशान पहुंचे। उसे देखकर प्रसादजी बोले 'माता को खोजते यहां तक पहुँचे जाओ गोद में ले जाओ।' और, शिशु का शव भी उसी चिता को समर्पित हो गया। कैसे-कैसे निर्मम आघात उस कवि ने झेले है और कभी आर्त नही हुए। कोमल कल्पनाओं के आश्रय उस कवि के हृदय की गंभीरता अनन्त रही। प्रसादजी दूलह मैं सहबाला यद्यपि मैं विवाहिता था, पर 'प्रसाद' जी के तृतीय एवं अन्तिम विवाह (१९१८ ई०) में 'सहबाला' बनने का सौभाग्य मुझे ही मिला। रुद्रपुर (गोरखपुर) के एक सज्जन ने मेरे विवाह का प्रस्ताव किया, तो वे ठठाकर हंस पड़े और कहने लगे, 'क्या इसका पुनर्विवाह होगा !' हारमोनियम लाओ तो कविता सुनाऊँ एक बार 'निरालाजी' प्रसादजी के यहाँ ठहरे थे। वे जब कभी काशी आते, तब प्रायः 'प्रसादजी' के यहाँ ही ठहरते थे। एक दिन मैंने 'प्रसाद'जी से कहा-'भैय्या, सुनता हूँ निरालाजी बहुत सुन्दर कविता पाठ करते हैं। कुछ इनसे सुनवाइये । प्रसादजी ने निरालाजी की ओर संकेत किया और कहा-'निरालाजी, आपकी कविता सुनने के लिए लोग उत्सुक हैं, कुछ सुना दीजिए।' निरालाजी ने झट उत्तर दिया'हारमोनियम मंगाओ तो सुनाऊँ।' यह सुनकर प्रसादजी हँसने लगे और उन्होंने मुझसे कहा-'लो, यदि सुमना हो तो निरालाजी को हारमोनियम लादो।' मुहल्ले के एक सज्जन के यहां से हारमोनियम मंगाया गया और निरालाजी ने लगभग डेढ़ घंटे तक अपनी कविताएँ सुनाई। x संस्मरण पर्व : २२५