पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५३१

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नहीं है। वे पहले स्वयं ही गाड़ी में बैठ गये, फिर उन्होंने हम लोगों को भीतर बैठने के लिए मंकेत किया यह शिष्टाचार नहीं है। उन्हें, हम लोगों को बैठाकर स्वयं बैठना चाहिए था।' प्रसादजी ने कहा--'क्या कलकत्ते में लोग ऐसा ही करते हैं ?' मैंने कहा-'कलकत्ता ही क्या हर जगह का यही शिष्टाचार है'। मेरे इस विचार से प्रसादजी बड़े प्रभावित हुए। प्रसादजी से मेरी एक झड़प ___ अपने जीवन के अन्तिम चार वर्षों में उन्होंने एक व्यक्ति (गंगाराम नाई) को अपने कचहरी के कारपरदाज़ और गृह मंपत्ति के प्रबन्धक के रूप में रख लिया था। यद्यपि वह व्यक्ति निम्न श्रेणी का था पर था बड़ा ही चालाक और वाक्पटु । वह प्रसादजी का बड़ा ही मुंहलगू हो गया था। कचहरी में मामले-मुकदमें का तथा मकानों की किराया वसूली का काम वही करता था। 'प्रसाद'जी के सम्मुख उसकी धृष्टता भरी बड़ी बड़ी बातें और अविनम्र आचरण मुझे अच्छा नहीं लगता था । पर उसने प्रसादजी को मानो वशीभूत कर लिया था। ____एक दिन मुझसे नहीं रहा गया। मैंने प्रमादजी से कहा- 'भैया, इम व्यक्ति को आपने सिर पर चढ़ा लिया है, यह अच्छा नहीं लगत!। यह तो अपने को आपसे तनिक भी कम नहीं समझता और आपके मुंह लगा रहता है। इसका प्रभाव दूसरों पर भी अच्छा नहीं पड़ेगा। मेरी ये बातें 'प्रसाद'जी को अच्छी न लगीं और उन्होंने कुछ क्रोध में आकर कहा - -'तो मैं क्या करूं, न चहरी का काम स्वयं करूं किराया स्वयं वसूल करूं ?' उममें कुछ गुण भी तो है, तुम लोगों को तो दोष ही दिखाई पड़ता है।' मैंने कहा- 'भैया, आप जो चाहे करें मैने तो अपना एक विचार मात्र व्यक्त किया क्योंकि मुझे इसका परिणाम शुभ नही जान पड़ता। काशी में बहुत से लोग आपको मिल सकते हैं, जो आपका कारवार संभाल सके और देख सकें। पर यह व्यक्ति निश्चय ही अच्छा नहीं है। आप में और इसमें आकाश-पाताल का अन्तर है। आपके सामने बराबरी के माथ इसकी बाते योभा नहीं देती।' मेरी इन बातों को सुनकर प्रसादजी कुछ मौन-से हो गये और फिर कहने लगे-'तुम्हें मेरी विवशताओं पर भी तो कुछ ध्यान रखना चाहिए'। इतना सुनकर मैं भी चुप हो गया। अहरौरा-यात्रा बात सन् १९२८ या २९ की है। उस समय मैं कुछ दिनों के लिए काशी में ही था। अहरौरा में एक सम्बन्धी के ग्रहां विवाहोत्सव था। उसमें मैं भी आमंत्रित था। प्रसादजी भी आमन्त्रित थे। हम लोगों ने सराय गोवर्द्धन से साथ ही अहरौरा के लिए प्रस्थान किया। हम लोगों के साथ बचनू महराज, कवि महिदेव पण्डित और लंबोदर वैद्य भी थे। हम पांचों आदमी कैण्ट स्टेशन आये। वहीं हम लोग गाड़ी में संस्मरण पर्व : २२७