पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५४७

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कुछ अन्यथा न सोचें। भाभी के हाथ का भोजन मुझे अधिक प्रिय लगता है, इसीलिये मैं वही खा लिया करता हूँ 'उन्होंने कहा-'तुम तो सभा के सदस्य हो फिर.......' उनके इस कथन का तात्पर्य मै समझ गया, और मैंने कहा-'शिवशिव', मैंने बिरादरी को आमन्त्रित नही किया है । इस अवसर पर मैंने अपने मित्रों, परिचितों और सगे-सम्बन्धियों को आमंत्रित किया है । इसलिए वे सभी आज मेरे अतिथि हैं और मेरे लिये समान है। मेरा यह उत्तर उन्हें रुचिकर नही हुआ पर आगे कुछ बोल न सके। तिलक के बाद से 'प्रसादजी नित्य प्रातःकाल अपने समय से उठ जाते और चाँद पाल घाट से फेरी स्टीमर द्वारा शिवपुर स्थित भारत विख्यात वौटेनिकल गार्डेन तक वे नित्य घूमने जाते थे उस प्रभात वायु मेवन का उनके स्वास्थ्य पर मुन्दर प्रभाव पड़ा। लगभग ९ बजे लौटते फिर स्नान और पूजन आदि अपना दैनिक कार्य करते । इस बीच उनका स्वास्थ्य भी काफी सुधर गया। उनके भोजन आदि में भी सुधार हो गया था। विवाह के दो तीन दिन पूर्व बाबू अम्बिका प्रमादजी ने एक पत्र मेरे हाथ में देकर, मुझसे कहा-'इमे छपवा दो, मै बिरादरी की एक सभा बुलाना चाहता है।' मुझे उनका यह प्रस्ताव बहुत अरुचिकर लगा। मैने कहा--"शिव शिव, इस समय बिरादराने का विवाद छेड़ना उचित न होगा। इसके लिए कोई और समय निर्धारित कर लीजिए। शान्तिपूर्वक मेरा यह शुभ कार्य सम्पन्न होने दीजिए। 'इतना कहकर मैं उनके समीप से उठ पड़ा। मैं कुछ गम्भीर और विक्षुब्ध-सा चला आ रहा था, रास्ते में प्रसादजी मिल गये। वे बाहर टहलने के लिए निकल रहे थे, मैंने उनसे उक्त कथोपकथन सुनाया। उन्होंने कहा-'तुमने जो उत्तर दिया वह उचित और यथेष्ट है।' इसी बीच मेरे अग्रज पुरुषोत्तमदासजी भी वहाँ आ गये। उन्होंने प्रसादजी की ओर अभिमुख होकर कहा-'खण्डेराव, क्या बात है, मै भी सुन' ( वे प्रसादजी को खण्डेराव कहकर पुकारा करते थे ) 'प्रसाद'जी ने कहा-'दादा, इस समय शिव शिवजी का कुछ विशेष आयोजन है, वे बिरादरी की सभा बुलाना चाहते हैं। तो मैं भी तैयार होकर आया हूं। नाऊ और ब्राह्मण मेरे साथ हैं।' बिरादरी के चौधुरी के साथ नाऊ और ब्राह्मण का होना आवश्यक था। यह बात यही समाप्त हो गई। बाबू अम्बिका प्रसादजी भी मौन हो गये। किन्तु इस घटना की प्रतिक्रिया में ही जिज्जाजी को बगल में बैठाकर प्रसादजी ने कच्चा भोजन कराया जिस पर वे लोग और क्षुब्ध-हुए । प्रसादजी चाहते थे कि सबको ठीक अवसर पर ठीक उत्तर दिया जाय । एक दिन 'प्रसाद'जी ने मुझे बुलाकर पूछा-'कहो, तुमने विवाह में कार्यभार वितरण की क्या व्यवस्था की है ?' मैंने उनसे कहा-'भइया, सबसे बड़ा कार्य भार संस्मरण पर्व : २४३