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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५६१

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और चरित् को ध्यान में रख प्रत्यक व्यक्ति के उन्होंने नाम रख छोड़े थे। वे मन्दस्मित के साथ अपने रखे हुए नाम के बाद गुरू लगाकर उन्हें सम्बोधित करते । परिणाम यह हुआ कि लोग उन लोगों के अमली नाम प्रायः भूल गये और ममाज में वे प्रसादजी द्वारा रखे नाम से प्रसिद्ध हो गये। जैसे पड़ोगी प्रलम्ब काया ---निकले हुए पेट वाले वद्य (महादेव मिश्र) का नाम उहीने लम्बोदर महागज रखा । वैद्यजी प्रसादजी के मुख से यह मम्बोधन पाकर 4 हंमते । मरणोपरान्न भी कम लोग जान पाये कि उनका नाम क्या था। मुहल्ले के, सत्य और ईमानदारी का दम भरने वाले एक रईम का नाम उन्होंने धर्मराज रख दिया, वे इसी नाम से माने जाने लगे। उनके बगीचे में एक पखावजी संगीत के अध्यापक रहते थे। उनका नाम उन्होने "जंजाली गुरू" रखा। दूसरा कोई भी व्यक्ति यदि उन्हे "ज जाती गृरू" कहता तो वे पखावजी आपे से बाहर हो जाते, झगह पदत, वृनडाई होती। लोग कहो प्रसादजी आपको जंजाली गुरू कहते है तो आप उनमे क्यो ना ज़झने है। व उत्तर देते प्रसादजी को मुझे कुछ भी कहने व। अधिकार है, प्रमाद जी इम द्वन्द्व-युद्ध का मुस्करा कर आनन्द लेते । एक दिन इस घोर युद्ध को देश प्रमाद जी के एक सहपाठी बोले --"आग लगाय जमालो दुर खटी".-आप कम नही है। आग लडाई तगाने में चाणक्य से कम नही है। प्रमादजी गुम्कग देते। वेनियाबाग में प्रातः चारिका के बाद माहित्यिकों के माथ प्रमादजी मुप्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के बहनोई नगर के विख्यात होमियोपैथिक डाक्टर एन० मिह के उपचार कक्ष मे मवेरे प्राय: नित्य आते थे। उनमे प्रतिश्याय, काम एव स्नायविक दौर्बल्य की कुछ-कुछ दवाइयां लेते थे। इस अवधि में कुछ हास्य विनोद भी हुआ करता। दो एक उदाहरण प्रस्तुत है। किसी व्याधि के लिये प्रमादजी ने डा० एच० सिंह से दवा • 'गी। डाक्टर माहब ने मुझसे कहा प्रसादजी को दो मात्रा 'एण्टिम ऋड' दे दो। रोकते हुए प्रसादजी बोले जीवन में प्रथम चरण डाला है मुझे अभी अन्तिम कुद मन दीजिये। दूसरे दिन मुझे आदेश हुआ प्रसादजी को कली फास दिया जाय, मुनते ही प्रसादजो बोलेकलि के जिम फंदे (रोग) से छुटकारे के लिये आपके पास आया आप आदेश दे रहे हैं मुझे वही कलि-फांग पुनः दिया जाय । डाक्टर माहब बोले - -"नण्ट के नव कण्टकम्" काटे से ही पैर मे धंसे कांटे को निकालने का विधान है यही होमियोपैथी का चिर अडिग सिद्धान्त हैं। प्रसादजी मुस्कराकर बोले वह सिद्धान्त और कलिफांस आपको मुबारक हो मुझे नही चाहिये। Kali Phos की पांच पुड़िया बनाकर मैंने प्रसादजी को दिया। उसे जेब में रख वे हंसते हुए कक्ष से बाहर चले गये । एक दिन की बात है। प्रसादजी अपनी शिथिलता का अनुभव डाक्टर साहब से मम्मरण पर्व : २५७