पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५६९

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'कामायनी'-सुधा-सरिता का जीवन, 'आंधी'-'छाया'-'एकघंट'-प्रतिलेपन, स्फुट कहानियों को गद्यान्वित कविता, अलिखित नाटक के गीतो की वाणी, और कभी 'कंकाल' आदि के परि नय, इसी भांति उनकी दूीन पर बैठे कितनी कृतियो के असुलभ-रम-वाहन सुन्दर अवतरणो मे दस न ज जाते । उनके घर तक तार उन्ही बातो का रहता। वहाँ पहच वह थोडा भोजन करते, और वौद्ध-ग्रन्थो-सूत्रो वे व्यस्त अध्ययन मे तुरन्त लग जाते । पौन बजे तक मैं अपने घर आता, या उनकी बैठक में ही पड रहता। असित उषा के उठने पर भी, धृमिल दीवट के आलोक-चक्र को छ्ता, उस महर्षि का छाया-चित्र विमोहन, पान कचरते मुख का छायान्दोल।, काव्योन्नत ललाट की छाया पडती, और पलटना पन्नो का सुन पडता । अन्तरिक्ष कहता, तू कवि सर्वोपरि, हो कृतार्थ तुम शीश झुका लेते थ, भार सांप कर उम यश का कर्ता को। लम्बलोम-वक्षस्थल के अन्तर में एक कुलन यह थी कि अधिकतम जनमत हृदयहीन, रसहीन, मदिरमति क्यो है ? श्रोता सुन्दर से सुन्दर कृतियो पर क्यों नाक-भौह सिकोड़े रह जाते है ? क्यो तुकबन्दो को सङ्कर कृतियो पर लोटपोट हो फूले नही समाते ' ? क्यों धनिकों ने बन्द मुट्ठियाँ कर ली ? क्यों मरखप कर कलाकार श्रमजीवी मंस्मरण पर्व : २६५