पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/९९

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थोड़ी देर में दुर्ग में पाक सैनिकों की भरमार हो गई। दुर्ग के नीचे का आगन्तुक इन सब का सार था और सर्दार के न रहने से युद्ध के लिए भी कौन उद्योग कर सकता था। दूसरे ही दिन विहंग कलरव के साथ ही भारतीय वीरों के कुटुम्ब में 'सर्दार पत्नी के बारे में अनेक प्रकार की चर्चा होने लगी। इधर दुर्ग में से कुछ विशेष नियमों को स्वीकार कराने के लिए सिकन्दर के यहां दूत भेजने की व्यवस्था होने लगी। ____ अनेक प्रकार की उपहार की सामग्री लेकर सिकन्दर के शिविर में दूत पहुंचे। सिकन्दर ने शिष्टाचार के साथ उन लोगों के आवेदन को स्वीकार किया और आज्ञा दी कि भारत से आये हुए वीर सकूटुम्ब और सशस्त्र अपने स्थान को चले जाय और उनके जाने में किसी प्रकार की बाधा न दी जायगी। उपहार स्वीकृत हुआ। सबलोग अपने दुर्ग की ओर पलट आये। मिंगलौर दुर्ग से निकल कर भारतीय वीर सपरिवार एक पहाड़ी पर जाकर ठहर गये, क्योंकि सन्ध्या समीप थी इस कारण उन लोगों ने रात वहीं बिताना ठीक समझा। भारत।रमणियां अपने प्यारे बच्चों और पतियों के लिए भोजन प्रस्तुत करने लगीं। अकस्मात एक ग्रीक अश्वारोही भारतीय सेना के शिविर-द्वार पर आ पहुंचा, तत्काल ही उसके आने का कारण जानने के लिए एक क्षत्रिय युवक उठ खड़ा हुआ। ग्रीक सैनिक जो बरछे के सहारे कूद कर खड़ा हो चुका था बोला-'तुम लोगों को दया करके शाहंशाह सिकन्दर ने अपनी सेना में स्थान देने का विचार कर लिया है, आशा है इस मंवाद से तुम लोग बहुत प्रसन्न होगे।' वह भारतीय योद्धा तत्काल ही बोल उठा-क्षमा कीजिए, इस दया के लिए हम लोग सिकन्दर के कृतज्ञ है पर अपने देश वासियों को दुख देने के लिए ग्रीकों का साथ देना हम लोग कभी पसन्द नही करेगे। आशा है कि सन्धि के अनुसार हमलोगों के स्वदेश जाने में कोई बाधा न उपस्थित की जायगी। ग्रीक०-क्या तुम लोग इस बात पर दृढ़ हो ? अच्छा, एक बार और विचार कर उत्तर दो क्योंकि इसी उत्तर पर तुम लोगों का जीवन-मरण निर्भर करता है। इस पर कुछ भारतवासी समस्वर से बोल उठे-'हां हां हम अपनी बातों पर दृढ़ हैं, पर सिकन्दर भी जिसने देवताओं के नाम से शपथ खाया है अपने शपथ को न भूलेगा।' ग्रीक०- -सिकन्दर ऐसा मूर्ख नहीं है जो शत्रुओं को वश में पाकर छोड़ दे और उन्हें दृढ़ होने का अवकाश दे। उसने शपथ दुर्ग में से तुम लोगों के सकुशल निकल जाने देने के लिए खाया है जिसे वह पूरा कर चुका। अस्तु, अब तुम लोग मरने के लिए प्रस्तुत हो जावो। सिकन्दर का शपथ मिंगलोर-विजय : ९९