पृष्ठ:प्राकृतिक विज्ञान की दूसरी पुस्तक.djvu/८८

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पाठ २६ कुहरा और प्रोस बालको ! तुमने बहुधा शरतु में दिन छिपते समय बाज़ार और सड़कों में धुवां सा भरा हुआ देखा होगा। यही कुहरा होता है। शरदऋतु में दोपहर के समय बड़ी धूप पड़ती है । इस धूप की गर्मी से कुछ पानी पृथ्वी के नदी, नालों और हमारे तुम्हारे भीगे हुए कपड़ों से भाप बनकर उड़ जाता है। धूप की गर्मी के कारण वायु गरम रहती है । यह पानी उस वायु में भाप के रूप में रहता है और हम उसको नहीं देख सकते हैं। जब सूरज छिप जाता है तो वायु ठंडी होने लगती है । ठंड पाकर वायु की भाप स्थूल हो जाती है । स्थूल होने के कारण वह भारी हो जाती है और हमको पृथ्वी के पास कुहरे के रूप में दिखाई देती है। कभी २ कुहरा इतना घना होता है कि हम थोड़ी की वस्तुओं को भी नहीं देख सकते हैं । परन्तु ऐसा कुहरा बहुधा शरऋतु में प्रातःकाल तड़के ही पड़ता है। यह कुहरा रात भर पड़ता है । परन्तु आधी रात के Courtesy Dr. Ranjit Bhargava, Desc. Naval Kishore. Digitized by eGangotri