देहली का प्रसिद्ध कुतुब-मीनार पृथ्वीराज का बनाया हुआ है या कुतुबुद्दीन ऐबक का, इसके निश्चय की आवश्य- कता है। देहली मे हमने इस मीनार को स्वयं देखा है और जिन लोगो ने इसके विषय मे लिखा है उनके लेख भी, जहाँ तक हमको मिल सके, हमने पढे हैं।
सर सैयद अहमद खॉ ने आसारुस्सनादीद नाम की एक
किताब लिखी है। उसमे उन्होने देहली की प्राचीन इमारतों
और वहाँ के प्राचीन शिलालेखो का वर्णन किया है। सैयद
साहब का मत है कि यह मीनार आदि मे हिन्दुओ का था।
इस विषय में एशियाटिक सोसाइटी के जरनल मे भी कई
विद्वानों ने कई लेख लिखे हैं। परन्तु पुरातत्त्व के सम्बन्ध
मे जनरल कनिहम की सम्मति बहुत प्रामाण्य मानी जाती है।
उन्होंने “आरकिओलाजिकल रिपोर्ट सू” के पहले भाग में
कुतुब-मीनार से हिन्दुओं का कोई सम्बन्ध न बतलाकर उसे
खालिस मुसलमानी इमारत बतलाई है। इसके सिवा यडवर्ड
टामस ने अपनी “पठान किगज़ माफ़ देहली" नाम की किताब
में जनरल कनिहम के मत को पुष्ट किया है। टामस साहब
बंगाल, लंदन और पेरिस की एशियाटिक सोसाइटी के सभासद
थे। उन्होने पुरातत्व-सम्बन्धी सैकड़ों निबन्ध इन सोसाइटियों