पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/११

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साॅची के पुराने स्तूप


को छिन्न-भिन्न कर डाला है। तथापि अभी इनकी कुछ अंश शेष है जिससे भारतवर्ष की प्राचीन कारीगरी का कुछ-कुछ अनुमान किया जा सकता है। ये स्तूप अपने समय मे इतने प्रसिद्ध थे कि सुदूरवर्ती चोन देश से भी बौद्ध परिव्राजक यहाँ आते थे। परन्तु बली काल ने इनको नष्टप्राय कर दिया है । ये, इस समय, घने जगल के बीच मे आ गये हैं और जङ्गली जीवों ने इनको अपना घर बना लिया है।

भिलसा के बौद्ध-स्तूप पूर्व-पश्चिम १७ मील और उत्तर- दक्षिण ६ मील तक की ज़मीन पर फैले हुए हैं। सब मिला-. कर वे ६५ हैं। उनकी तफसील इस तरह हैं——

१० सॉची मे। ८ सोनारी में। ७ सतधारा मे। ३ श्रोधर मे। ३७ भोजपुर मे।

ये स्तूप प्राय: अशोक के समय के अर्थात् ईसा से ३०० वर्ष पहले के हैं। परन्तु साँची और सतधारा के स्तूप इनसे भी पुराने हैं । वे ईसा से कुछ कम ६०८ वर्ष पहले के मालूम होते हैं। अर्थात् उनको बने कोई ढाई हज़ार वर्ष हुए ।

भूपाल से सॉची २६ मील है। वहाँ से कुछ दूर पर विश्वनगर किंवा वेशनगर नामक एक प्राचीन शहर के चिह्न हैं। इस शहर का दूसरा नाम चैत्यगिरि था। बौद्धो के चैत्य नामक प्रार्थना-मन्दिरों की अधिकता के कारण इसका नाम चैत्यगिरि हो गया था। इसके आस-पास अनेक मन्दिर, चैत्य और स्तूप भग्नावस्था में पड़े हैं। इससे सूचित होता हैं