पृष्ठ:प्राचीन चिह्न.djvu/१२

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प्राचीन चिह्न

कि मालवा का यह प्रान्त किसी समय बहुत ही अच्छी दशा में था। यहाँ पर, कहीं-कही, पहाड़ियों के बीच के दरों मे, पानी इकट्ठा करने के इरादे से, प्राचीन समय मे जो बांध बाँधे गये थे, वे अब तक विद्यमान हैं। जान पड़ता है, पुराने बौद्ध-भिक्षु परमार्थ-चिन्तक भी थे और किसानी का भी काम करते थे।

साँची के सबसे प्रधान स्तूप के दक्षिण तरफ़ जो खम्भा है उस पर, प्राचीन पाली भाषा मे, “शान्ति-सड्डम" खुदा हुआ है। इसे कोई-कोई “सन्तसङ्घम' अथवा “सन्ता-सङ्घम" भी पढ़ते हैं। साँचो इसी शान्ति अथवा सन्त शब्द का अप- भ्रश जान पड़ता है। बौद्ध साधु विहारी ही में रहते थे; स्तूपों मे नहीं। इससे “सन्त-सनम" पाठ ठीक नहीं मालूम होता। “शान्ति-सङ्कम" ही अधिक युक्तियुक्त बोध होता है। हमने सॉची के स्तूप प्रत्यक्ष देखे हैं, कई बार देखे हैं। पहली दफे. जब हम उन्हे देखने गये तब उनके प्राचीन वैभव का विचार करके और उनकी इस समय की भग्नावस्था को देख- कर हमारी आँखो मे आँसू भर आये। जिस पहाड़ी पर सॉची है वह औरों से अलग है। वह वहाँ पर अकेली ही है। वह विन्ध्याचल की पर्वतमाला का एक टुकड़ा है। उसका ऊपरी भाग समतल है और कही-कही पर सघन वृक्षा से आवृत है। सॉची के स्तूप इस पहाड़ी के उत्तर-दक्षिण हैं। पहाडी का यह भाग बेतवा नदी के बॉये किनारे से थोड़ी ही दूर पर है। इस पहाड़ी पर खंडहर ही खॅडहर