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पेरू का प्राचीन सुर्य-मन्दिर


वेल, बूटे और चित्रों से कोई स्थान खाली न था। विदेशी लोग इस महा अलौकिक मन्दिर को देखकर चकित होते थे और घण्टो तक एक ही जगह पर स्तब्ध खड़े रहकर, इसकी शोभा और कारीगरी को इकटक देखा करते थे।

इस मन्दिर के बनाने में अपरिमित धन लगा था। जब पिज़ारो ने कज़को को अपने अधीन करके उसे लूट लिया तब उसके एक अधिकारी ने लूट के माल मे से और कुछ न मॉगकर केवल वे छोटी-छोटी कीलें मांगी जिनको जोड़कर इस मन्दिर का नाम दीवारों पर उठाया गया था। उसकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई। जब ये सोने की कीले तौली गई तब २५ मन निकलीं! इसी से इस मन्दिर की बहुमूल्यता का अनु- मान करना चाहिए।

हमारे देश मे सूर्य के बहुत कम मन्दिर हैं। एक मन्दिर झॉसी के पास, दतिया राज्य के अन्तर्गत, उनाव नामक गाँव में है। उसमे सूर्य की जो मूर्ति है उसका आकार कज़को की मूर्ति से मिलता है। कज़को के इस प्राचीन मन्दिर का चित्र अगरेज़ी भाषा की एक पुस्तक में प्रकाशित हुआ है। जान पड़ता है, मन्दिर को आँखो से देखकर यह चित्र नहीं उतारा गया। ध्वंस किये जाने पर उसके वर्णन पढ़कर, अटकल से, किसी चित्रकार ने उसे बनाया होगा।

[ मई १९०४

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