जैनों का दूसरा प्रसिद्ध मन्दिर जगन्नाथ-सभा नामक है। वह इन्द्र-सभा से मिला हुआ है; परन्तु उससे छोटा है। उसकी कुछ मूर्तियाँ छिन्न-भिन्न भी हो गई हैं। इससे उसकी शोभा में क्षीणता आ गई है। उसकी बनावट, भीतर और बाहर, इन्द्रसभा से प्राय: मिलती-जुलती है। उसका शिल्पकार्य और उसकी मूर्तियाँ भी बहुत करके इन्द्र-सभा से मिलती हैं। अतएव उसके विषय में विशेष रूप से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं।
यलोरा में हिन्दू-मन्दिरों की संख्या औरों की अपेक्षा अधिक है। जैसा, पहले, एक जाह कहा गया है वे सब १७ हैं। वे बौद्ध और जैन-मन्दिरों के बीच में हैं। उनमें से ये मुख्य हैं, यथा—
|
|
रावण की खाई मे अनेक मूर्तियाँ हैं।
दशावतार मे विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियों के सिवा शिव की भी कितनी ही मूर्तियाँ हैं। अतएव यह गुफा-मन्दिर शैव और वैष्णव, दोनों प्रकार के, मन्दिरों का मिश्रण है। इसका मण्डप ३१ फ़ुट चौड़ा, २६ फ़ुट गहरा और १० १/२ फ़ुट ऊँचा है। इसमे एक खण्डित शिलालेख है। इस लेख में