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यलोरा के गुफा-मन्दिर

जैनों का दूसरा प्रसिद्ध मन्दिर जगन्नाथ-सभा नामक है। वह इन्द्र-सभा से मिला हुआ है; परन्तु उससे छोटा है। उसकी कुछ मूर्तियाँ छिन्न-भिन्न भी हो गई हैं। इससे उसकी शोभा में क्षीणता आ गई है। उसकी बनावट, भीतर और बाहर, इन्द्रसभा से प्राय: मिलती-जुलती है। उसका शिल्पकार्य और उसकी मूर्तियाँ भी बहुत करके इन्द्र-सभा से मिलती हैं। अतएव उसके विषय में विशेष रूप से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं।

यलोरा में हिन्दू-मन्दिरों की संख्या औरों की अपेक्षा अधिक है। जैसा, पहले, एक जाह कहा गया है वे सब १७ हैं। वे बौद्ध और जैन-मन्दिरों के बीच में हैं। उनमें से ये मुख्य हैं, यथा—


१ रावण की खाई
२ देववाड़ा
३ दशावतार
४ कैलास अथवा रङ्ग-महल


५ लङ्केश्वर
६ रामेश्वर
७ नीलकण्ठ
८ धुमारलेन अथवा सीता की चावड़ी

रावण की खाई मे अनेक मूर्तियाँ हैं।

दशावतार मे विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियों के सिवा शिव की भी कितनी ही मूर्तियाँ हैं। अतएव यह गुफा-मन्दिर शैव और वैष्णव, दोनों प्रकार के, मन्दिरों का मिश्रण है। इसका मण्डप ३१ फ़ुट चौड़ा, २६ फ़ुट गहरा और १० १/२ फ़ुट ऊँचा है। इसमे एक खण्डित शिलालेख है। इस लेख में