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प्राचीन चिह्न


राष्ट्रकूट-वंशीय ६ राजो के नाम पाये जाते हैं। राष्ट्रकूटों ने ६०० से लेकर १००० ईसवी तक दक्षिण में राज्य किया। इस लेख मे जिन नरेशो के नाम हैं वे ये हैं-


१ दान्तिवर्मा
२ इन्द्रराज, प्रथम
३ गोविन्दराज, प्रथम (६५०-६७५ ई० )
४ कर्कराज, प्रथम
५ इन्द्रराज, द्वितीय
६ दान्तिदुर्ग


(६००—६३० ई०)
(६३०—६५० ई०)
(६५०—६७५ ई०)
(६७५—७०० ई०)
(७००—७३० ई०)
(७५३ ईं०)

इस लेख मे कई श्लोक पूरे हैं, और भली भांति पढे जा सकते हैं। इन्द्रराज की प्रशंसा मे एक श्लोक यह है-

विकासि यस्य क्षणदास्वविक्षतं शशाङ्कधामव्यपदेशकारि ।
करोति सम्प्रत्यपि निर्मलं जगत् प्रसन्नदिड मण्डलमण्डन यशः ॥

यह बहुत ललित और कोमलावृत्ति-वलित पद्य है। इन्द्र- राज के पुत्र गोविन्दराज के वर्णन मे एक श्लोक यह है-

दुर्वारोदारचक्र पृथुतरकटकः क्षमाभृदुन्मूलनेन
ख्यात. शङ्खाङ्कपाणिर्वलिविजयमहाविक्रमावाप्तलक्ष्मी ।
क्षोणीभारावतारी विपममहिपतेस्तस्य सूनुन पोऽभूत्
मान्यो गोविन्दराजो हरिरिव हरिणाक्षीजनप्रार्थनीयः ॥

इन राजो मे दान्तिदुर्ग बड़ा प्रतापो हुआ। उसने अनेक राजोपर विजय पाई । चालुक्य राज वल्लभ तक को उसने परास्त करके अपना करद बनाया। उसकी प्रशंसा में लिखा है-