राष्ट्रकूट-वंशीय ६ राजो के नाम पाये जाते हैं। राष्ट्रकूटों ने
६०० से लेकर १००० ईसवी तक दक्षिण में राज्य किया। इस
लेख मे जिन नरेशो के नाम हैं वे ये हैं-
|
|
इस लेख मे कई श्लोक पूरे हैं, और भली भांति पढे जा सकते हैं। इन्द्रराज की प्रशंसा मे एक श्लोक यह है-
विकासि यस्य क्षणदास्वविक्षतं शशाङ्कधामव्यपदेशकारि ।
करोति सम्प्रत्यपि निर्मलं जगत् प्रसन्नदिड मण्डलमण्डन यशः ॥
यह बहुत ललित और कोमलावृत्ति-वलित पद्य है। इन्द्र- राज के पुत्र गोविन्दराज के वर्णन मे एक श्लोक यह है-
दुर्वारोदारचक्र पृथुतरकटकः क्षमाभृदुन्मूलनेन
ख्यात. शङ्खाङ्कपाणिर्वलिविजयमहाविक्रमावाप्तलक्ष्मी ।
क्षोणीभारावतारी विपममहिपतेस्तस्य सूनुन पोऽभूत्
मान्यो गोविन्दराजो हरिरिव हरिणाक्षीजनप्रार्थनीयः ॥
इन राजो मे दान्तिदुर्ग बड़ा प्रतापो हुआ। उसने अनेक राजोपर विजय पाई । चालुक्य राज वल्लभ तक को उसने परास्त करके अपना करद बनाया। उसकी प्रशंसा में लिखा है-