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प्राचीन चिह्न


छोर मिलाकर गॉठ दी हुई है। गाँठ के नीचे एक छोर लम्बा लटक रहा है। उसमे फन्दा बना हुआ है। यह यज्ञीय पशु बाँधने का रस्सा है। इसी रस्से से कुछ दूर नीचे, चौकोन अंश पर, लेख खुदा है। ऊपर, सिरे से, एक माला लटकी हुई दिखाई गई है। अपनी गति को पहुँचाये जाने के पहले शायद यज्ञीय पशु के गले से यह माला निकालकर यूप पर लटका दी जाती रही है।

दूसरा स्तम्भ २० फुट २ इञ्च ऊँचा है। वह भी अनेकाश में पहले ही स्तम्भ के समान है। पर उस पर कोई लेख नहीं।

पहले स्तम्भ का लेख स्तम्भ की १२३ इञ्च चौड़ी जगह में खुदा हुआ है। उसमे ७ पंत्तियाँ हैं। अक्षरों की उँचाई से १३ इञ्च तक है। लेख की नकल नीचे दी जाती है——

(१) सिद्धम् ॥ महाराज्यस्य राजातिराज्यस्य देवपु-

(२) त्रस्य शाहेर्वाशिष्कस्य राज्यसंवत्सरे च-

(३) तुर्विशे २४ ग्रीष्म-मासे चतुर्थे दिवसे

(४) त्रिंशे ३० अस्यां पूर्वायां रूदिलपुत्रेण द्रोण-

(५) लेन ब्राह्मणेन भारद्वाज-सगोत्रेण मा-

(६) ण-च्छन्दोगेन इष्ट्वा सत्रेण द्वादशरात्रेण

(७) यूप. प्रतिष्ठापित. प्रियन्तां-अग्नय ॥

अर्थात्——महाराजाधिराज देवपुत्र शाह वाशिष्क के चौबीसवे राज्य-वर्ष में, ग्रीष्म-ऋतु के चौथे महीने के तीसवे