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प्राचीन चिह्न


है। उधर प्रतिष्ठान की अवनति हुई, इधर प्रयाग की उन्नति । किसी-किसी का अनुमान है कि प्रतिष्ठान की अवनति के कारण मुसलमान हैं। यह भी किवदन्ती है कि हरवांग नाम का एक मूर्ख राजा यहाँ हुआ। उसके सब कामों में——

टका सेर भाजी टका सेर खाजा

वाली कहावत चरितार्थ होती थी। उसी के समय से प्रतिष्ठान की अधोगति का सूत्रपात हुआ। परन्तु इस विपय का कोई विश्वसनीय ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। नही मालूम, सच बात क्या है।

झूॅसी में समुद्रगुप्त और हंसगुप्त के किलों का अब कोई चिह्न नही। पर समुद्रगुप्त का समुद्र-कूप अब तक बना हुआ है। इसी कूप के पास, थोड़ी दूर पर, हंस-कूप अथवा हंस-तीर्थ नाम का एक और पुराना कुवॉ है। वह महाराज हंसगुप्त का बनवाया हुआ है। वह बिगड़ा पडा है। उस पर एक लेख खुदा है जिसमे लिखा है कि इसमे स्नान करने से पापो का क्षालन होता है। इसी के पास एक नया मकान बन गया है। लोग अब उसे ही हंसतीर्थ समझते हैं। पुराने और सच्चे हंसतीर्थ को वे भूल सा गये हैं।

पूँसी के नये स्थानों में से तिवारी का मन्दिर देखने योग्य है।

[ फरवरी १९११


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