जिनको देखकर आजकल के कूपर्सहिलवाले बट बड़े सिनियर भी आश्चर्य के महासमुद्र में गोता लगा जाते हैं।
डाक्टर फरगुसन का मत है कि बौद्ध लोगों की प्राचीन इमारते पॉच भागों मे बॉटी जा सकती हैं । यथा——
(१) पत्थर के विशाल खम्भे, या लाटें, जिन पर लेख खोदे जाते थे।
(२) स्तूप——जो गौतम बुद्ध की किसी अवशिष्ट वस्तु को रक्षित रखने या किसी पवित्र घटना या स्थान का स्मरण दिलाने के लिए बनाये जाते थे।
(३) रेल्स अर्थात् पत्थर के एक प्रकार के घेरे जो स्तूपों के चारों ओर बनाये जाते थे और जिन पर बहुत बारीक नक्काशी का काम रहता था।
(४) चैत्य अर्थात् प्रार्थना-मन्दिर ।
(५) विहार अर्थात् बौद्ध-संन्यासियों के रहने के स्थान।
स्तूपो का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध समुदाय भिलसा के
पास है। यह शहर सेधिया के राज्य में है। कानपुर से
जो रेल बम्बई,को जाती है वह भिलसा मे ठहरती है। वहाँ
स्टेशन है। भिलसा बहुत पुराना शहर है। वह बेतवा नदी
के तट पर बसा हुआ है। उसका प्राचीन नाम विदिशा है।
उसके आस-पास अनेक स्तूप हैं। वे सब "भिलसा स्तूपों"
के नाम से प्रसिद्ध हैं। पर सॉची के स्तूप भूपाल की बेगम
साहबा की रियासत में हैं। सॉची भी रेल का स्टेशन है।