इस स्थान को अपने अधिकार मे कर लिया। श्रीरङ्गपत्तन
के किले के लेने मे जो नरहत्या हुई वह इतिहासज्ञों पर
विदित ही है।
श्रीरङ्गपत्तन में श्रीरङ्गजी के मन्दिर के सिवा एक और मन्दिर है। उसका नाम रामस्वामी का मन्दिर है। श्रीरङ्गजी का मन्दिर प्राचीनता और रामस्वामी का मन्दिर भव्यता के लिए प्रसिद्ध है।
यहाँ पर जो किला है वह बहुत मज़बूत है। उसके
तीन तरफ़ नदी है। इस किले मे टीपू सुलतान और अँग-
रेज़ों में भीषण संग्राम हुआ था। टीपू स्वयं बड़ा बहादुर
था। वह स्वयं मोरचो पर हाज़िर रहता और अपनी फ़ौज
को बराबर उत्साहित करता था। परन्तु अँगरेज़ी सेना
के वेग को वे लोग नही सह सके। उनके पैर उखड़ गये।
टीपू की फ़ौज का कुछ हिस्सा किले की दीवारों पर से नीचे
कूदकर भागने लगा। इस कूदने मे हज़ारो आदमियों की
जाने गई। जो मरे भी नहीं थे उनके हाथ-पैर टूट गये।
इस युद्ध मे टीपू का घोड़ा गोली लगने से मारा गया। तिस
पर भी टीपू ने बहुत देर तक युद्ध किया। आख़िर को
उसका पतन हुआ। परन्तु उसको उस वक्त अँगरेज़ी फौज
ने नहीं पहचाना। वह एक सामान्य योद्धा की तरह युद्ध
करता रहा। जब उसकी लाश मिली तब मालूम हुआ कि
उसकी बॉह में सङ्गीन का एक बड़ा घाव था।