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श्रीरङ्गपत्तन

१७८० से १७८५ ईसवी तक टीपू ने कनेल बेलो और कई और अँगरेज़ अफ़सरो को इस किले के उत्तरी भाग में कैद कर रखा था। जहाँ ये लोग कैद थे वह जगह अभी तक स्मारक के तौर पर वैसी ही बनी है।

किले के भीतर जितने मकान थे प्रायः सब गिरा दिये गये हैं। जो हैं भी वे बहुत बुरी हालत में हैं। यहाँ का जल- वायु बहुत खराब है। एक सप्ताह भी रहने से बुखार आये बिना नहीं रहता।

मृत्यु से कुछ समय पहले टीपू ने श्रीरङ्गपत्तन में एक जुमामसजिद बनवाई थी। यह अभी तक अच्छी हालत में है। इसकी इमारत भी अच्छी है। इसके मीनारों पर चढ़कर देखने से शहर और आसपास का दृश्य अच्छी तरह देख पड़ता है।

टीपू सुलतान का महल भी किले के भीतर है। उसका कुछ भाग गिरा दिया गया है और कुछ में चन्दन की लकड़ी का गोदाम है। यह महल टोपू के समय में बहुत बड़ा था। टीपू के रहने के स्थान का रास्ता बहुत तङ्ग था। उस रास्ते मे चार जगह पर चार शेर जजीरों से बंधे रहते थे। बीच मे एक दीवानखाना था। उसी मे बैठकर टीपू लिखता- पढ़ता था। वहाँ उसके दीवान मीर सादिक के सिवा और कोई नहीं जाने पाता था। टीपू के सोने का कमरा बहुत मज़बूती से बन्द रहता था।