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प्राचीन चिह्न

टीपू डरा करता था कि पलँग पर सोते समय खिड़कियो के रास्ते कोई उसे गोली न मार दे। इसलिए वह एक झूले पर सोता था। यह झूला जंजीरों के द्वारा छत से लटका करता था और खिड़कियों से न देख पड़ता था। इस झूले पर एक नङ्गो तलवार और दो भरे हुए तमञ्चे हमेशा रक्खे रहते थे। इस सोने के कमरे मे एक और दरवाज़ा था। वह टीपू के हरम से मिला हुआ था। हरम मे सब ६०० स्त्रियाँ थीं। उनमे से ८० तो टोपू की बीवियाँ थी; शेष लौंड़ियाँ वगैरह थी।

किले के बाहर टीपू का दरियाय-दौलत नाम का एक महल है। यह एक बाग के बीच में है। गरमी के दिनों मे टीपू साहब यहीं तशरीफ रखते थे। यह बहुत सुन्दर इमारत है। इसमे रङ्ग का काम बहुत ही मनोहर है। १७८० ईसवी में हैदर अलीने अगरेजों की एक बहुत बड़ी सेना को परास्त किया था। यह लड़ाई काजोवरम के पास हुई थी। अँगरेज़ी सेना के नायक कर्नल बेलो थे। इस लड़ाई मे हैदर की जो जीत हुई थी उसका चित्र इस महल की पश्चिमी दीवार पर चित्रित था। इसका रङ्ग उतर गया था। इसलिए जब श्रीरङ्गपत्तन अँगरेज़ो के हाथ आया तब कर्नल बेलेजली ने फिर इसे नया करवाया। वे कुछ दिन तक इस महल मे रहे भी थे। एक बार यह चित्रावली सफ़ेदी करते समय धो गई थी। परन्तु जव लार्ड डलहौसी माइसोर गये तब उन्होंने फिर से इसे रँगाया।