भवभूति राजतरगिरी के चतुर्थ तरग में लिखा है-- , कधिपतिराजश्रीमरभूत्यादिसेपित. जिनो ययी यशोरमा तद्गुणस्तुतिवन्दिताम् (श्लोक १४५) । अर्थात, याकपतिराज और भवभूति आदि कवियों से मेगा किए गए यशोरा ने (ललितादित्य से) परास्त होकर उस विजयी का गुण गाया। यशोवर्मा नाम का राजा मा १६३ से ७२६ ईसवी तक कनीज के राज्यासन पर मामीन था । इस यशोवर्मा को काश्मीर के राजा ललिता. दित्य ने परास्त किया, और भरभूति को अपने साथ वह काश्मीर ले गया। इससे यह सिद्ध कि भयमूति, अष्टम शादी के प्रारंभ में, कान्पाजाधिप यशोगमा की सभा में, उमा आधित दोकर, विद्यमान था। अतएव "पह कहना समुचित नही जान पड़ता कि भयभूति को राजामय था, यदि उमे राजाध्य होता तो उसके तीनों नाटकों का प्रयोग कामप्रियनाथ को यात्राको केममय क्यों होता", पिण शाची की यद उक्लिशिलपुश निराधार माभूति को माय मयप या। कानप्रियगाय की गाया ही समप समो नाटकों का प्रयोग या, मा गई कारण होगा। मामू में पोयमों को ता में ग्यान पाने पर रोशपरसाने नाकरिता, पशोपना पराजयममंतर माया र मोरपी TENT
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