हीन होकर स्वदेश को लौटने पर, शायद उसने उन्हें बनाया
हो, अथवा राजधानी की अपेक्षा यात्राओं में अधिक जन-
समूह एकत्र होने के कारण उसी अवसर पर शायद उसने
अपने नाटकों का प्रयोग किया जाना प्रशस्त समझा हो।
कुछ वर्ष टुप, डॉक्टर वूलर को एक "गौडवहो" (गौड़वध)-
नामक प्राकृत कान्य मिता । इस काय को श्रीयुत पांडुरंग ने
बंबई में छपाकर प्रकाशित किया है। इसके कर्ता वहीधापति-
राज है, जो यशोवर्मा की सभा में विद्यमानथे। उन्होंने "गौड़-
वध" में यशोवर्मा का विस्तृत वृत्तात लिखा है और तद्वारा
गौरदेश के गजा का पराजय वर्णन किया है । इस काव्य
में वापतिराज ने अपनी कविता के संबंध में लिखा है-
प्राकृत
भवभूइजलहिनिग्गयकब्बामयरसकणा इव स्फुरन्ति
जस्स बिसेसा अजधि बिय हेसु कहापबधेनु
सस्कृत
भवभूतिजलविनिर्गतका-यामृतरसकणा इव स्फुरन्ति
यस्य विशेपा अद्यापि विकटेघु कथाप्रवन्धेषु
अर्थात्, भवभूतिरूपी जलनिधि से निकले हुए कान्यरूपी श्रमत के कणों के समान जिसके नियों में अनेक विशेष- विशेष गुण अद्यापि चमक रहे है । इससे भी वाकपतिराज के साथ भवभूति का, यशोवर्मा के यहाँ अष्टम शताब्दी के प्रारंभ में, होना सूचित होता है।