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प्राचीन पंडित और कवि

१३४ प्राचीन पंडित और कवि यह कहकर मंजुश्री अतर्धान हो गये । उस अवसर पर दिमंडल बड़े हो समुज्ज्वल प्रभापुज से प्रकाशित हो गया। आंध-देश का राजा दिइनाग के पास आया और उसने अनुरोध किया कि श्राप हेतु-विद्या-शान की अवश्य रचना करके उसे समाप्त कीजिए । तव दिङनाग ने प्रमाण-समुच्चय- नामक प्रथ लिखना प्रारभ कर दिया। प्रमाण समुच्चय का प्रतिपाद्य विषय प्रमाण-समुच्चय का छद अनुष्टुप है। हेमवर्मा नाम का पक भारतीय बौद्ध पडित था । उसी ने दे-प-शे-स नामक तिब्वतीय राज-लामा के साथ प्रमाण-समुच्चय का अनुवाद तिब्बतीय भापा में किया। तिब्धत के शे-पइ-गेने नामक बिहार में यह अनुवाद-कार्य समाप्त हुआ। तिब्बतीय भाषा में इस ग्रंथ का नाम है-"छे-म-कुत"। ग्रंथ के प्रारंभ में दिङ्नाग ने लिखा है- ___ "जो जगत् का हितसाधक और प्रमाण का अवतार- रूप है उसी सर्वशरण्य महागुरु सुगत के चरणों में सिर रखकर, इधर-उधर विखरे हुए प्रमाण-विषयक वचनसमूहों का पफत्र संग्रह करके, में इस प्रथ की रचना करता हूँ।" ग्रंथांत में दिदनाग ने लिखा है- "सर्वदेशीय तार्किकों का पराभव करनेवाले और हाथी के सदृश वलसंपन्न दिनाग ने, अपने ही रचे हुए श्लोकों का संग्रह करके, इस प्रथ का प्रकाशन किया।"