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पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/१४

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प्राचीन पंडित और कवि

प्राचीन पंडित और कवि के अनुसार भवभूति का समय राजशेखर से कुछ ही पहले, अर्थात् अष्टम शताब्दी के प्रारम में, होना भी सिद्ध है। सप्तम शताब्दी के मध्य में होनेवाले याण कवि ने अपने हर्षचरित में जिन कवियों के नाम दिए हैं, उनमें भवभूति फा नाम न दिया जाना भी याण के अनतर भवभूति का होना सिद्ध करता है। भवभूति ने महावीरचरित, मालतीमाधव और उत्तर- रामचरित-ये तीन नाटक लिखे है। इनमें से अंतिम में अल्प और पहले के दोनों नाटकों में किचित् विशेष रूप से उसने अपने जन्मस्थान आदि का वृत्तांत लिखा है । महावीरचरित में अपने चिपय में जो कुछ भवभूति ने लिखा है, वह यह है- "अस्ति दक्षिणापथे पद्मपुरं नाम नगरम् । तत्र केचि. तैत्तिरीयिण काश्यपाश्चरणगुरव, पक्तिपावना. पचाग्नयो वृतवता. सोमपीथिन उडम्बरा ब्रह्मादिनः प्रतिवसन्ति । तदामुप्यायणस्य तत्र भक्तो वाजपेययाजिनो महाकवे पचम. सुग्रहीतनान्नो भट्टगोपालस्य पौत्र. पवित्रकीतीलकंठस्या- त्मसम्भरः श्रीकठपदलांछनो भवभूति म जातूकर्णीपुत्रः।

  • डॉक्टर भाडारकर लिखते हैं कि शाजधर-पद्धति में-

निरवद्यानि पद्यानि यदि नाटयस्य का क्षति भिक्षुकक्षविनिक्षित किमिक्षुनीरसो भवेत् यह श्लोक भवभूति के नाम से निर्दिष्ट है, जिससे सूचित होता है कि इस कवि ने इन तीन नाटकों के अतिरिक और भी कोई अन्य लिसा है, क्योकि गह श्लोक इन तीनों पुस्तकों में नहीं पाया जाता।