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७७ मधुरवाणी विपक्षिकायां चतुरा. प्रगल्भा शास्त्रेऽतिदक्षास्सग्सप्रवन्धे । समीपमेतस्य समेत्य केऽपि सुनृजना म्यम्बरला व्यपन् । सर्वात्तरस्वादिमसम्मनान्ध्रप्रवन्धनिर्माणपवेलिमानि । यशासि भूयाम्यवतारयन्त्यस्महन्नशमति सरोग्या ।। भारतवर्ष के लिए यह रकम गोरव की रात नहीं कि अभी तीन दी सौ वर्ष पूर्व यहाँ कान्य रचने की शति रखनेवाली अनेक विदुषी लिया जन्म लेनी थी। क्या भारत श्राने प्राचीन गौग्न को फिर को ग्रास करेगा? जूलाई १६०० -