पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हीरविजय सुरि तारीगुरवस्तु पाटकमलं नारोपय तस्तदा पलायामुपरीति भूमिपत्तिना पृr किनगुरो॥ अकयर ने पूछा-'गुरुजी!चने तो हो?" अफरर को हिंदी का यह नमूना ध्यान में रखने लाया है। फिर उनका हाय पकडकर कर उन्ह महलों के भीतर ले गया और विदीने पर मिठाना चाहा। पर हारविजय ने बलामन पर पैर रखने से इनकार कर दिया। इस पर सकपर को आश्चर्य हुया और सूरि महोदय से उसने इसका कारण एला । जेनशास्त्रों में इस तरह बिस्तर पर पंडने को मात्रा नही त्यादि यात जर अकयर ने सुनी तर उसे और मी आश्चर्य हुना। जैन साधु मयारी नहीं रमते, ये मदा पदल दी चलते हैं। श्रतएर विसाय भी दमदाबाद में गदादी मारे ६, यह मय सुकर समय सान्यर्ग को मामा न रही। पर प्रतिशिसमादर-मधिमा पानी पुराने पर धर्म पिरती धागा पाकर म में धर्म परमार ANTनिरुरित fril पमा लिया और गोलोक पारि भाषिता, और रिमा शानिरurr पहन प्रमणमा परमो धर्म एगामंदी पासी इनार किया TITTER::: " नमा