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प्रियप्रवास

प्रिय! सब नगरो मे वे कुवामा मिलेगी ।
न सुजन जिनकी है वामता बूझ पाते ।
सकल समय ऐसी सॉपिनो से बचाना ।
वह निकट हमारे लाडिलो के न आवे ॥५३॥

जब नगर दिखाने के लिये नाथ जाना ।
निज सरल कुमारो को खलो से बचाना ।
सँग सँग रखना औ साथ ही गेह लाना ।
छन सुअन गो से दूर होने न पावे ॥५४॥

धनुष मख सभा मे देख मेरे सुतो को ।
तनिक भृकुटि टेढ़ी नाथ जो कस की हो ।
अवसर लख ऐसे यत्न तो सोच लेना ।
न कुपित नृप होवे औ वचे लाल मेरे ।।५५।।

यदि विधिवश सोचा सूप ने और ही हो ।
यह विनय बड़ी ही दीनता से सुनाना ।
हम बस न सकेगे जो हुई दृष्टि मैली ।
सुअन युगल ही है जीवनाधार मेरे ॥५६।।

लख कर मुख सूखा सूखता है कलेजा ।
उर विचलित होता है विलोके दुखो के ।
शिर पर सुत के जो आपदा नाथ आई ।
यह अवनि फटेगी और समा जाउँगी मै ॥५७।।

जगकर कितनी ही रात मैने बिताई ।
यदि तनिक कुमारो को हुई बेकली थी ।
यह हृदय हमारा भग्न कैसे न होगा ।
यदि कुछ दुख होगा बालको को हमारे ॥५८।‌।