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प्रियप्रवास

सलिल - पूरित थी सरसी हुई।
उमड़ते पड़ते सर - वृन्द थे।
कर - सुप्लावित कूल प्रदेश को।
सरित थी स - प्रमोद प्रवाहिता ॥६॥

वसुमती पर थी अति - शोभिता।
नवल कोमल - श्याम - तृणावली।
नयन - रंजनता मृदु - मूर्ति थी।
अनुपमा - तरु - राजि - हरीतिमा ॥७॥

हिल, लगे मृदु - मन्द - समीर के।
सलिल - विन्दु गिरा सुठि अंक से।
मन रहे किसका नः विमोहते।
जल - धुले दल - पादप पुंज के ॥८॥

विपुल मोर लिये बहु - मोरिनी।
विहरते सुख से स · विनोद थे।
मरकतोपम पुच्छ - प्रभाव से।
मणि - मयी कर कानन कुंज को ॥९॥

बन प्रमत्त . समान पपीहरा।
पुलक के उठता कहं पी कहाँ।
लख वसंत - विमोहक - मंजुता।
उमग कूक रहा पिक - पुंज था ॥१०॥

स - रव पावस - भप - प्रताप जो।
सलिल · मे कहते बहु भेक थे।
विपुल • झीगुर तो थल' मे उसे।
धुन लगा करते नित गान थे ॥११॥