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द्वादश सर्ग

सुखद - पावस के प्रति सर्व की ।
प्रकट सी करती अति - प्रीति थी ।
वसुमती - अनुराग - स्वरूपिणी ।
विलसती - बहु - वीर वहूटियाँ ॥१२॥

परम - म्लान हुई बहु - वेलि को ।
निरख के फलिता अति - पुष्पिता ।
सकल के उर मे रम सी गई ।
सुखद - शासन की उपकारिता ॥१३॥

विविध - आकृति औ फल फूल की ।
उपजती अवलोक सु - बूटियाँ ।
प्रकट थी महि - मण्डल मे हुई ।
प्रियकरी - प्रतिपत्ति - पयोद की ॥१४॥

रस - मयी भव - वस्तु विलोक के ।
सरसता लख भूतल - व्यापिनी ।
समझ है पड़ता बरसात मे ।
उदक का रस नाम यथार्थ है ।।१५।।

मृतक - प्राय हुई तृण - राजि भी ।
सलिल से फिर जीवित हो गई ।
फिर सु - जीवन जीवन को मिला ।
वुध न जीवन क्यो उसको कहे ।।१६।।

ब्रज - धरा यक बार इन्ही दिनो ।
पतित थी दुख - वारिधि मे हुई ।
पर उसे अवलम्बन था मिला ।
ब्रज - विभूषण के भुज- पोत का ॥१७॥