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प्रियप्रवास

संसार मे सकल - काल नृ- रत्न ऐसे ।
है हो गये अवनि है जिनकी कृतज्ञाक्ष।
सारे अपूर्व - गुण - है उनके बताते ।
सच्चे - नृ - रत्न हरि भी इस काल के है ।।७८॥

जो कार्य श्याम - घन ने करके दिखाये ।
कोई उन्हे न सकता कर था कभी भी ।
वे कार्य औ द्विदश - वत्सर की अवस्था ।
ऊधो न क्यो फिर नृ - रत्न मुकुन्द होंगे ॥७९॥

बाते बड़ी सरस थे कहते बिहारी ।
छोटे बड़े सकल का हित चाहते थे ।
अत्यन्त प्यार दिखला मिलते सवा से ।
वे थे सहायक बड़े दुख के दिनो मे ।।८०।।
 
वे थे विनम्र बन के मिलते बड़ों से ।
थे बात - चीत करते बहु - शिष्टता से ।
बाते विरोधकर थीं उनको न प्यारी ।
वे थे न भूल कर भी अप्रसन्न होते ॥८१॥

थे प्रीति - साथ मिलते सब बालको से ।
थे खेलते संकल - खेल विनोद - कारी ।
नाना - अपूर्व - फल-फूल खिला खिला के ।
वे थे विनोदित सदा उनको बनाते ॥८२॥

जो देखते कलह शुष्क - विवाद होता ।
तो शान्त श्याम उसको करते सदा थे। ।
कोई बली नि - बल को यदि था सताता ।
तो वे तिरस्कृत किया करते उसे थे ॥८३॥