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प्रियप्रवास

सुन पड़ी ध्वनि एक इसी घडी ।
अति - अनर्थकरी इस ग्राम मे ।
विपुल वादित वाद्य - विशेष से ।
निकलती अव जो अविराम थी ॥११॥

मनुज एक विघोषक वाद्य की ।
प्रथम था करता वहु ताडना ।
फिर मुकुन्द - प्रवास - प्रसग यो ।
कथन था करता स्वर - तार से ।।१२।।

अमित - विक्रम कस नरेश ने ।
धनुष - यज्ञ विलोकन के लिये ।
कल समादर से ब्रज - भूप को ।
कुँवर संग निमंत्रित है किया ॥१३॥

यह निमंत्रण लेकर आज ही ।
सुत - स्वफल्क समागत है हुए ।
कल प्रभात हुए मथुरापुरी ।
गमन भी अवधारित हो चुका ॥१४॥

इस सुविस्तृत - गोकुल ग्राम मे ।
निवसते जितने वर - गोप है ।
सकल को उपढौकन आदि ले ।
उचित है चलना मथुरापुरी ॥१५।।

इसलिये यह भूपनिदेश है ।
सकल - गोप समाहित हो सुना ।
सव प्रबन्ध हुआ निशि मे रहे ।
कल प्रभात हुए न विलम्ब हो ॥१६॥