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द्वितीय सर्ग

निमिप मे यह भीपण घोपणा ।
रजनि - अक-कलंकित - कारिणी ।
मृदु - समीरण के सहकार से ।
अखिल गोकुल - ग्राममयी हुई ।।१७।।

कमल - लोचन कृष्ण-वियोग की ।
अशनि - पात - समा यह सूचना ।
परम - आकुल - गोकुल के लिये ।
अति - अनिष्टकरी - घटना हुई ॥१८॥

चकित भीत अचेतन सी बनी ।
कॅप उठी कुलमानव - मण्डली ।
कुटिलता कर याद नृशस की ।
प्रवल और हुई उर वेदना ।।१९।।

कुछ घड़ी पहले जिस भूमि मे ।
प्रवहमान प्रमोद - प्रवाह था ।
अब उसी रस - प्लावित भूमि मे ।
बह चला खर स्रोत विषाद का ॥२०॥

कर रहे जितने कल गान थे ।
तुरत वे प्रति - कुण्ठित हो उठे ।
अब अलाम अलौकिक कठ के ।
ध्वनित थे करते न दिगन्त को ‌‌।।२१।।

उतर तार गये बहु वीन के ।
मधुरता न रही मुरजादि मे ।
विवशता - वश वादक - बुन्द के ।
गिर गये कर के करताल भी ।।२२।।