पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९०
प्रिया-प्रकाश


पुनि घोंचि गुलाब तिलौंछ फुलेल अंगौछे मैं पाछे अंगौछान कै। कहि केशव मेद जुबाद सो माँजि इते पर आंजे मैं आंजन दै। वहुरचौ दुरि देखौं तो देखौं कहा सखि लाज तो लाचन लागि अहै।। शब्दार्थ--धनसार= कपूर । तिलौछि फुलेल = फुलेल लगाकर। अंगौछना अंगौछे से पोछना । आछे अच्छी तरह से। अंगौछनिकै = अंगौछे से। भेद = कस्तूरी। जुबाद = ( यह फारसी शब्द है) मार्जार के अंडकोश से निकली हुई कस्तूरी। (नोट)-गुरु बस्तुओं में 'लाज' भी है; अतः लाज की 'गुरुता वर्णन करते हैं:- भावार्थ-हे सखि ! पहले तो आलस छोड़कर मैंने आईना देखा ( कि देखू मेरे चेहरे पर से लजा का प्रभाव हटा या नहीं) तदनंतर एक घड़ी तक चेहरे को कपूर से घसा (कि कपूर आंखों में लगने से आंसू निकलें और उनसे चेहरे की लज्जा बह जाये ) पुनः गुलाब जल से धोकर फुलेल लगाकर अंगौछे से अच्छी तरह चेहरा पोछा (कि लाज {छ जाय) तदनंतर मेद तथा जुबाद से चेहरे को मांजकर आँखों में अंजन लगाया ( कि इसकी कारिख से नेत्रों की लजा लिए जाय) फिर भी नायक को छिपकर देखने पर भी मैं देखती हूँकि लजा मेरी आंखों में लगी ही है। ८-( कोमल वर्णन) मूल-पल्लव, कुसुम, दयालुमन, माखन, मैन, मुरार । पाट, पामरी, जीभ, पद, प्रेम, सुघुन्य बिचार ॥ १८ ॥ शब्दार्थ-मैन-मोम । मुरार = कमलमूल। पाद-रेशम । पामरी-रेशमीवन।