पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

छठा प्रभाव १०१ केशव लजात जलजात, जातजेद ओप, जातरूप बापुरो विरूप सो निहारिये। बदन निरूपन निरूपम निरूप भये, चन्द बहुरूप अनुरूप कै बिचारिये । सीताजी के रूप पर देवता कुरूप को हैं, रूपही के रूपक तौ बारि बारि डारिये ॥४२॥ शब्दार्थ-दमयंती = राजानलकी स्त्री। इन्दुमती = राजा अज- की स्त्री (श्रीराम जीकी दादी। छनछवि-बिजली। जन- जात-कमल । जातवेद - अक्षि जातरूप - सोना । विरूप = बदसूरत । निरूप बदसूरत । बहुरूप = अनेक रूप धारण करने वाला बहुरूपिया (अताई )। अनुरूपक = प्रतिमा । देवता = देवांगनाएँ (शची, ब्रहाणी आदि) रूप ही के रूपक - सौंदर्य के उपमान । बारि डारिये निघाबर कर डालिये। भावार्थ-दमयंती इन्दुमती और रति ( सीता के रूप के साम- ने ) क्या हैं ( तुच्छ हैं ) यदि इन्हें रातोदिन बिजली से सिंगा- से रहैं तो भी उतनी सुंदर न होगी (जितनी सीता जी हैं )। केशव कहते हैं कि लीता के रूप के आगे कमल और शशि की आभा लजित होती है, और सोना विचारा तो बदसूरत देख पड़ता है । बदन का निरूपण करते समय अनूपम बस्तुएं भी बदसूरत चने लगी। चंद्रमा तो अनेक रूपधारी बहु- बहुरूपिया (स्वांग भरने वाला ) की प्रतिमाही विचार में पाया। सीता जी के रूप के सामने कुरूप देवनारियां क्या हैं? उनका तो ऐसा रूप है कि सौन्दर्य की जितनी उपमाएं हैं वे सब उनके रूप पर निछावर कर डालना चाहिये।