पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/११३

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१०२ प्रिया-प्रकाश (यथा) सब उसमा कवि रहे अठारी। केहि पटतरिय विदेह कुमारी ॥ (तुलसी) १८-(क्रूरकर वर्गन) मूल-मोगुर. साँप, उलूक, अज, महिषी, कोल बखानि । भेडि, काक, वृक, करम. खर. स्वान कूरस्वर जानि ॥४३॥ शब्दार्थ-अज= बकरा। महिषी-भैंस । कोल सुअर वृक= भेड़िया । करभ =(१) ऊंट (२) हाथी ! (यथा) मूल-झिल्ली ते रसीली जीली, रोटीहू की रट लीली, स्यारि ते सवाई भूतभामिनी ते आगरी । केशौ दास भैंसन की भामिनी ते भासै बेस, खरीते खरी सी धुनि अटी ते उजागरी । भेड़िन की मीड़ी मेड़, ऐंड न्योरी नारिन की, योकी हू ते बांकी बानी, काकि हू की का गरी । सूकरी सकुचि, संकि कूकरियो मूक भई, घूधू की घरनि को है मोहै नाग-नागरी ॥४४॥ शब्दार्थ-झिल्ली = झींगुर । जीली बारीक । राटी टिटिभी (सिटिहरी)। भृतभामिनी = चुड़यल । नागरी- बढ़कर । भैंसन की भामिनी == भैंसी । बेस- (देश) अच्छी। खरी= गदही । खरी == बढ़कर । उजागरी अधिक स्पष्ट। मीडी- मेंड़ मर्यादा मल डाली। ऐंड़-धमंड। बोकी = बकरी । काकि = ( काकी ) कौवा की स्त्री । का= काँच काँध शब्द । गरी गल गई । नाग नागरी- हथिनी, करिणी।