पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१३०

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छठा प्रभाव जालगि केशव भारत भो भट पारथ जीवन बीज बई जू । मानव दानव देवन के जु तपोबल केई न हाथ भई जू । सात समुद्रन मुद्रित राम सु बिप्रन बार अनेक दई जू॥७१॥ शब्दार्थ-हिरनाछ = हिरण्याक्ष । भट"वई जूबीर अर्जुन ने जिस पृथ्वी को जीवो के बीज से बोया अर्थात् इतने जीवों को मारा कि उनके प्राणों से सारी पृथ्वी खेत की तरह चो गई। कई = किसी प्रकार । न हाथ मई - अधिकार में न रही । मुद्रित =वेष्ठित । राम= परशुराम । भावार्थ-स्पष्ट है। (श्री रामचन्द्र को दान वर्णन) मूल पूरन पुराण अरु पुरुष पुराने परि- पूरन बतावै न बता₹ और उक्ति को । दरसन देत जिन्हें दरसन सममैं न, नेति नेति कहैं बेद छांडि भेद युक्ति को। जानि यह केशोदास अनुदिन राम राम, रटत रहत न डरत पुनरुक्ति को । रूप देइ अनिमाहि, गुन देइ गरिमाहि, भक्ति देइ महिमाहि नाम देइ मुक्ति को ॥७२॥ (नोट)-केशव कौमुदी के प्रथम प्रभाव में इसकी टीका देखो। (पुनः) जो सतयज्ञ करे करी इन्द्र सों सो प्रियता कपिपुंज सों कीनी । ईशदई जु दये दस सीस सुलंक बिभीषणै ऐसहि दीनी ।