पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१३१

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१२० प्रिया-प्रकाश दान कथा रघुनाथ की केशव को बरनै रस अद्भुत भीनी । जो गति ऊरधेरेतन की सु तौ औध के सूकर कूकर लीनी ॥७३॥ शब्दार्थ-प्रियता= प्यार वा प्रेम । ऐसहि बिना कुछ लिये, मुफ्त ! रस अद्भुत भीनी-बड़ी अद्भुत। ऊरधरेता योगी जन । औध-अवध, अयोध्या। भावार्थ-सरल और स्पष्ट है। (राजा बलि को दान वर्णन) कैटभ सो, नरकासुर सो, पलमें मधु सो, सुर सो जेहिं मारयो। लोक चतुर्दश रक्षक केशव पूरण वेद पुराण विचारयो । श्री कमला-कुच-कुंकुममंडन पंडित, देव अदेव निहारयो । सो कर मांगन को बलि पै करतारहु को करतार पसारयो ।।७४।। भावार्थ-जिस हाथ ने कैटभ, नरकासुर, मधु, तथा मुर नामक बली दैत्यों को एका क्षणमात्र में मारडाला, जो हाथ चौदहो लोकों का रक्षक है, ऐसा चारो वेद कहते हैं । जो हाथ कमला के कुचमंडल में केशर लगाने में बड़ा पंडित है और जिसे देव और असुर सर ने देखा है, ब्रह्मा को भी पैदा करने वाले ईश्वर ने वहीं हाथ बलि के सामने मांगने के लिये फैलाया-ईश्वर भी जिसके द्वार पर मांगने आये वह अवश्य बड़ा दानी होगा। (राना अमरसिंह को दान वर्णन) मूल-कारे कारे तम कैसे प्रीतम सुधारे विधि , बारि बारि डारे गिरि केशादास भाख हैं।