पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१३२

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दुवन दरिद्र छठा प्रभाव भोरे भोरे मदनि कपाल फूले थूले थूले , डोलैं जल थल बल थानुसुत नाखे हैं बंटे बननात, छननात धने धुंधुरून, और भनमात भुवपति अभिलाये हैं। दल दलन अमरसिंह, ऐसे ऐसे हाथी ये हत्यार करि राखे हैं ॥ ७५ ॥ शब्दार्थ-तम कैसे प्रीतम राष्ट्र के मित्र से। प नुसुस- (स्थाणुसुत) गणेशजी! नाखे हैं = उल्लंघन कर गये हैं, बढ़ गये हैं। दुवन = दुर्जन (बुरा) अमरसिंह - उदयपुर वाल महाराणा प्रतापसिंह के पुत्र । भावार्थ-काले काले रंग के, जिन्हें हा ने राहु के मित्र सम बनाया है, जिन पर पहाड़ निछावर कर दिये जा सकते हैं, थोड़े थोड़े मद से जिनके कपोल खूब फूले हुए हैं, जो थल तथा जल में घूमते फिरते है और जो बल में गणेश से भी बढ़कर हैं। जिनपर घंटे धमनाते हैं, धुंधुरू बनछन बनते हैं, भौंरे गुजारते हैं, जिनके पाने की राजा लोग अभिलाषा रखते हैं। ऐले ऐसे हाथियों को राणा अमरसिंह ने, दोनों के बुरे दरिद्रदल को मारने के लिये हथियार बना रखा है (हाथी दान से गरीबों का परिद दूर करते हैं )। (राजा बीरबल को दाम वर्णन ) मूल-पापके पुंज पखावज केशव, शोक के शंख सुने सुखमा में । झूठ के झालरि मांझ अलोक के, आवम यूथन जाने जमा में ।