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प्रिया-प्रकाश


(नोट)-हिन्दी भाषा भरके समस्त वर्ण दो ही प्रकार के होते हैं, एक हस्व दूसरे दीर्घ । इन्ही दो प्रकार के वर्गों के प्रस्तार से छंद शास्त्र में करोड़ों कार के चंद बनते हैं और समस्त अन्य इन्हीं का समूह हैं। परमान = ( प्रमाण ) सचमुच, वास्तव में । सुकधि: संबोधन में हैं। सुमुख - गणेश जी । कुरुलेत- कुरुक्षेत्र । भावार्थ-हिन्दी भाषा के दो अक्षर ( अर्थात् ) ह्रस्व और दीर्घ दास्तव में सुवर्ण कण हैं । हे सुकवि ! गणेश रूपी कुरुक्षेत्र में पड़कर वेही सुवर्णकणरूपी दो अक्षर पर्वत समान हो जाते हैं (अर्थात् श्रीगणेश जी को स्मरण करके जो कवि कविता करता यह भाषा के लघु गुरु अक्षरों से बहुत बड़ा काम ले सकता है) (विशेष)-ऐसा प्रासद्ध है कि कुरुक्षेत्र के चक्रतीर्थ में डाला हुआ सोना आगामी जन्म में अनेक गुण होकर प्राप्त होता है। श्रता थोड़े से लघुगुरु यों द्वारा जो कवि श्रीगणेश की वंदना करैगा अर्थात् गणेशरूपी कुरुक्षेत्र में फेंकेगा। वह गणेश जी की कृपा से बहुत बड़े काव्य ग्रन्थ लिख सकेगा। इस कारण मैं श्री गणेश की बंदना करता हूँ। [ नोट ]- इस दोहे में कोई कोइ वाणी ( सरस्वती) की वन्दना समझते हैं। हमें तो अक्षरार्थ से स्पष्ट ही श्रीगणेश जी की वन्दना जान पड़ती है। [गणेशदन्त प्रभा वर्णन झूल-सत्व सम्वगुण को कि सत्य ही की सच्चा सुभ, सिद्धि की प्रसिद्धि की सुबुद्धि-वृद्धि मानिये ।

  • सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः