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पहला प्रभाव

ज्ञान ही की गरिमा कि माहमा विवेक की कि
दरसन ही को दरसन उर अनिये।
पुन्य को प्रकाश बेद विद्या को विलास किधौं,
जस को निवास केसोदास जग जानिये।
मदन कदन सुत बदन रदन किधौं
विधन विनासन की विधि पहिचानिये ॥३॥

शब्दार्थ––सत्व=सार। सत्वगुण=सतोगुण। सत्ता=वजूद, मूलकारण।की=कियौं! गरिमा=गरुवाई। महिमा=बड़ाई। दरसन=दर्शन शास्त्र। दरसन=रूप। प्रकाश=उजेला। विलास=शोभा। निवास=स्थान मदन कदन=शिवा बदन=मुख। रदन=दाँत। बिधि=तरकीब, क्रिया।

भावार्थ––(श्री गणेश जी के दाँत की प्रशंसा में कवि कहता है कि) यह सतोगुण का सार है, या साक्षात् सत्य ही का मूल कारण है, या सिद्धियों की शोहरत है, या इसे बुद्धि की बढ़ती माने। अथवा यह ज्ञान की गरुवाई है, या विवेक की बड़ाई है, या फिलासफी के रूप के साक्षात् दर्शन ही हैं ऐसा ही हृदय से समझ लें। अथवा यह पुण्य का काश है, या बेद विद्या की शोभा है, या इस संसार के यश का निवासस्थान ही समझें। अथवा शिवपुत्र (गणेश) मुख का दाँत है या विघ्नों के नाश करने की युक्ति है।

[ग्रन्थ प्रणयन काल]

मूल––प्रगट पंचमी को भयो कविप्रिया अवतार।
सोरह से अट्ठावनो फागुन सुदि बुधवार॥