पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२०४

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नवा प्रभाव भावार्थ-श्री राम जी अद्भुत गति के राजा है। स्वयं परम पुरुष हैं पर कुपुरुषों के संग में रहते हैं ( यह विरोध)- पृथ्वी के मनुष्यों के साथ रहते हैं ( भालु बानरों के संग रहे, यह अविरोध)। प्रति दिन दान किया करते हैं पर (कुदान ही में प्रीति है-यह विरोध ) पृथ्वी दान ही से प्रेम रखते हैं ( यह अविरोध हुआ)। सूर्यकुल के कलश हैं पर राहु को सुखद हैं ( यह विरोध हुश्रा) सूर्य कुल के कलश हैं उनके राज्य में मार्ग का सबं को अति सुख है-मार्ग प्रदर्शक हैं अथवा सुन्दर सड़कें बनवा दी हैं जिन पर चलकर लोग सुख पाते हैं (यह अविरोध हो गया)। साधु लोग उन्हें साधु चरित्र कहते हैं, परंतु वे परपली पर प्रेम रखते हैं (यह विरोध) के लक्ष्मी बल्लभ हैं (यह अबिरोध)। अकर कहलाते हैं पर धनुष धारण किये हैं (कहलाने में और बास्तविक क्रिया में विरोध सा है), परम कृपाल हैं (पर कृपा नहीं करते यह विरोध है) पर कृपाण धारियों के पति हैं। यह अविरोध)। दो लोचन वाले प्रत्यक्ष हैं (पर बामलोचन से हीन हैं, यह विरोध हुआ) कुलटा स्त्री से हीन हैं ( यह अविरोध)। ( नोट ) श्लेषार्थ से विरोध नष्ट होकर केवल अाभास मात्र रह जाता है। इस प्रासास को भी केशव ने विरोध ही माना है। हाल के अन्य प्राचार्य इसे एक स्वतंत्र अलंकार मानते हैं । ५-(विशेषालंकार) मूल-साधक कारण बिकल जहँ, होय साध्य की सिद्धि । केशवदास बखानिये, सो विशेष परसिद्धि ॥२४॥